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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
आदितै भेदरहित बाह्यविषयस्वरूप अभिन्न एक रूप ऐसा सामान्य, बहुरि अचेतन कहिये जड, बहुरि उत्पत्तिधर्मस्वरूप, बहुरि व्वक्त कहिये प्रकट दीखै, तैसैं तो प्रधान है; बहुरि तिसतै विपरीत कहिये उलटा विशेषणस्वरूप अर तैसा पुरुष है ऐसें सांख्य कहै है। ताकू दोय पक्ष पूछिये-जो ऐसा प्रधान केवल महत् आदि कार्यके निपजावनें प्रवत् है सो काहूकू अपेक्षा लेकरि प्रवत्र्ते है कि विना अपेक्षा ही प्रवृत्ति है ? जो कहै अपेक्षा लेकरि प्रवत्र्ते है तौ किसकी अपेक्षा ले है, सो निमित्त कहनां जाकी अपेक्षा ले प्रवत्र्ते । तहां कहै-जो पुरुषका प्रयोजन ही याके प्रवर्त्तनैमैं कारण है जातें ऐसा कह्या है, पुरुषार्थ हेतु करि प्रधान प्रवत्तै है । तहां पुरुषार्थ दोय प्रकार है; एक तौ शब्द आदि विषयका ग्रहण करना, दूजा गुण तो स्पर्श आदि अरु पुरुषतै अन्य जो प्रधान तिनितें पुरुषकै भेदका देखनां, ये दोय पुरुषार्थ कहे हैं । ताकू आचार्य पूछ है—कि यह सत्य है तैसैं प्रवर्त्तता भी प्रधान है सो पुरुषकृत किछू उपकार लेकरि प्रवत् है कि नाही लेकरि प्रवत्र्ते है ? जो कहैगा पुरुषकृत उपकार लेकरि प्रवत्र्ते है तौ तहां पूछे है--कि सो उपकार प्रधान भिन्न है कि अभिन्न है ? जो कहै—भिन्न है, तो यह उपकार प्रधानका है ऐसा नाम काहेरौं भया ? जो कहै—प्रधानकै अर उपकारकै संबंध है, तौ समवायादिक संबंध सांख्य मानै ही नाही तब संबंध काहेका ? बहुरि तादात्म्य कहै तौ भेद कैसैं कहिये, तादात्म्य तौ भेदका विरोधी है । बहुरि दूजा पक्ष कहै—जो उपकार प्रधानतें अभिन्न है तौ प्रधान ही तिस पुरुष करि किया ठहया । बहुरि कहैजो प्रधान पुरुष है उपकारकी अपेक्षा विना ही प्रवत्र्ते है तौ मुक्तात्मा प्रति भी प्रधान प्रवत्ते, यामैं विशेष नाही । या ही कथन करि निरपेक्षप्रवृत्ति पक्ष भी निराकरण किया, तहां भी हेतु कह्या सो ही जाननां ।