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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
अपौरुषेय है जातैं संप्रदायका अविच्छेद होतैं जाका कर्त्ताका स्मरण नांही, कथनी नांही, वेदके संप्रदायीकी परिपाटी मैं काहूनैं कर्ता देख्या नांही, सुन्यां नांही, कह्या नांही, जैसैं आकाशका कर्त्ता काहूनें कह्या नांही तैसैं । बहुरि अर्थापत्ति प्रमाण है ताकरि वेदके कर्त्ताका अभाव निश्चय कीजिये है जातैं वेदकी प्रमाणता है लक्षण जाका ऐसा अनन्यथाभूत पदार्थका दर्शन कहिये सद्भाव देखिये है । जातें धर्म आदि अतींद्रिय पदार्थ है विषय जाका ऐसा जो वेद ताका अल्पज्ञ पुरुषनिकार करनें का असमर्थपणां है । अर अतींद्रिय पदार्थका देखनेवाला पुरुषका अभाव ही है तार्ते वेदका प्रमाणपणां अपौरुषेयपणांहीकूं साधै है । ऐसें मीमांसकनैं अपनां वेदकै अपौरुषेयपणांकूं दृढ़ किया पौरुषेय आगमकूं दूषण दिया ।
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अब आचार्य याका प्रत्युत्तरकी विधि करें हैं- प्रथम तौ जो कहा कि अक्षरनिकै व्यापीपणांविषै अर नित्यपणां विषै प्रत्यभिज्ञान प्रमाण है सो यह तौ असत्य है, तिसविषै ज्ञान प्रमाण होय तो एकर्णका अनेक देशविषै सत्त्व होतैं खंड खंडरूप प्रतिपत्ति होय सो तौ नांही है । एकदेशमैं एकवर्ण अखंड ग्रहण होय है । दूसरे देश दूसरा तिस सारिखा अखंड न्यारा ग्रहण होय है, सो जो अक्षर सर्वदेश मैं व्यापक होय तौ एक ही देश मैं एकवर्णका समस्तपणांकरि ग्रहण कैसैं ब, नांही वर्णै । जो ऐसैं होय एक ही देश मैं अक्षर समस्तपणां करि ग्रहण होय तौ व्यापक न ठहरै, ऐसें भी व्यापकपणां मानिये तौ घट आदिककै भी व्यापकपणांका प्रसंग आवै । ऐसैं भी कह्या जाय जो घट सर्वगत है जातैं नेत्र आदिके निकटतैं अनेक देशविषै प्रतीति मैं आवै है । बहुरे जो कहै घटके उपजावनहारे माटी के पिंड I अनेक देखिये हैं तातैं अनेकपणां ही है । तथा बड़ा घट छोटा घट