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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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ऐसा देखिये है तो यह तौ अक्षरनिविर्षे भी समान है, तहां भी वर्ण वर्ण प्रति न्यारे न्यारे तालुवा आदिक कारणके समूह तथा तीव्र मंद आदि धर्म भेदका संभवका अविरोध है । बहुरि तालुवा आदिककै अक्षरनिका व्यंजकपणां आगैं इहां ही निषेध करसी, तातें यह कथन इहां ही रहौ । बहुरि कहै है—जो अक्षरनिकै व्यापीपणां होतें भी सर्वक्षेत्रमैं सर्वस्वरूपकरि प्रवृत्तिसहित हैं, तातैं तुम कहो सो दोष नाही । ताकू आचार्य कहै है;--ऐसे होते तो सर्वथा एकपणांका विरोध आवै है जारौं देशका भेदकरि एककाल सर्वस्वरूपकरि सर्वक्षेत्रमैं प्रतीतिमैं आवै ताकै एकपणां बर्षे नाही, यामैं प्रमाणविरोध है । ताका प्रयोग –गो शब्दका गकार आदि अक्षर हैं ते प्रत्येक अनेक ही हैं जातें एककाल भिन्न न्यारे न्यारे क्षेत्रनिवि सर्वस्वरूपकरि जैसो उच्चारण है तैसो ही समस्तपणांकरि प्रत्येक ग्रहण होय हैं, जैसैं घट आदि न्यारे न्यारे देखिये है तैसैं। बहुरि कहै कि सामान्य पदार्थ सर्व जायगां प्रतीतिमैं आवै है अर एक है ताकरि हेतुकै व्यभिचार आवैगा, तो इहां सो व्यभिचार नाही है, सदृश परिणामस्वरूप सामान्यकै भी अनेकपणां है । बहुरि चन्द्रमा सूर्य आदिकू एककाल अनेक क्षेत्रमैं तिष्ठते पुरुष पर्वत आदि अनेक प्रदेशनिमैं तिष्ठयापणांकरि अनेक न्यारा न्यारा देखें हैं अर चन्द्रमा सूर्य एक एक ही है तिनिकरि भी व्यभिचार नाही है जाते ते अतिदूरवर्ती हैं एकदेशमैं तिष्ठं हैं तौऊ भ्रांतिके वश” अनेक क्षेत्रमैं न्यारे न्यारे तिष्ठे दीखें हैं । सो जो भ्रान्तिरहित सत्यार्थ होय तातें भ्रांतिसूं दीखे तिनिकरि व्यभिचारकी कल्पना करनां युक्त नाही । बहुरि जलके पात्रवि. चन्द्रमा सूर्य आदिका प्रतिबिंब न्यारा न्यारा दीखै अर चन्द्रमा सूर्य एक एक ही हैं, अर ते प्रतिबिंब भ्रान्तिरूप भी नांही तिनिकरि भी व्यभिचार नाही है जातैं चंद्रमा सूर्य आदिका