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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
१३३ अर्थ-जे साध्यव्याप्त साधनकू नांही जानैं हैं तिनि प्रति पंडितजन दृष्टान्तविर्षे साध्यसाधनभाव पक्ष हेतुभाव कहैं हैं अर पंडितकू तो एक हेतु ही कहने योग्य है, ऐसैं बौद्धमती कहै है । जो पंडितनिकै तौ एक हेतु प्रयोग ही युक्त है, तिनिका निराकरणं करि पक्षहेतु दोऊ प्रयोगनिका स्थापन किया है । जातै व्युत्पन्न प्रति जैसा कह्या तैसे हेतुका प्रयोग करै तौऊ पक्षके प्रयोग विना साधनकै नियमरूप आधारपणांका निश्चय न होय ॥ ९३ ॥
आU अनुमानका स्वरूप प्रतिपादनकरि अब अनुक्रममैं आया जो आगम ताका स्वरूपकू निरूपण करनेंकू कहैं हैं;
आप्तवाक्यांदिनिबंधनमर्थज्ञानमागमः ॥१४॥ याका अर्थ;-आप्तका वाक्य आदि है कारण जाकू ऐसा अर्थका ज्ञान सो आगमप्रमाण है। तहां जो जिस उपदेशादि कार्यविर्षे अवं. चक होय सो तहां आप्त है ऐसे आप्तके वचन, अर आदिशब्दकरि अंगुली आदिकी समस्या लेनी, सो है कारण जाकू ऐसा अर्थ ज्ञानकू आगमप्रमाण कहिये । इहां इस सूत्रकी पदव्यवस्था ऐसी-जो 'अर्थज्ञान' ही कहिये तो प्रत्यक्ष आदितैं भी अर्थज्ञान होय है तिनिवि अतिव्याप्त होय, तारौं वाक्य निबंधन कह्या। बहुरि ऐसैं भी कहे हरेकके वाक्यनिबंधनविर्षे अतिव्याप्ति होय, तारौं आप्त कह्या, । बहुरि ऐसैं भी कहे आप्तका वाक्य काननिकरि सुण्यां तब श्रावण प्रत्यक्ष मतिज्ञानरूप सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष भया ताविर्षे अतिव्याप्ति होय यातें अर्थज्ञान ऐसा कह्या, ऐसैं आगमका लक्षण निर्दोष है । इहां अर्थका स्वरूप तात्पर्यरूप जाननां । ..
१-मुद्रित संस्कृत प्रतिमें 'वाक्यादि' :इसके स्थानमें 'वचनादि' ऐसा पाठ है।