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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
प्रयोग मात्रहीकरि अवधारण करें हैं-निश्चय करैं हैं । इहां 'हि' शब्द है सो हेतु अर्थमैं है तातें ऐसा अर्थ भया । जातें तथा उपपत्ति अन्यथा अनुपपत्ति ऐसैं अन्वय व्यतिरेक रूप व्याप्तिका ग्रहणकू न उलंधि करि हेतुका प्रयोग व्युत्पन्न करें हैं, तातैं ताकरि ही व्युत्पन्न हैं ते व्याप्तिका निश्चय करि ले हैं, दृष्टान्तादिकका किछू प्रयोजन न रह्या । दृष्टान्तादिककै व्याप्तिकी प्रतिपत्ति प्रति अंगपणां जैसैं नाही है तैसैं पहले कह आये, इहां फेरि काहे• कहिये ॥ ९१ ॥ .. आगैं दृष्टान्त आदिका प्रयोग है सो साध्यकी सिद्धिकै अर्थि भी फलवान नांही है, ऐसैं कहैं हैं;
तावता च साध्यसिद्धिः॥ ९२ ॥ याका अर्थ-तावता कहिये विपक्षविर्षे जाका असंभव निश्चित होय ऐसे हेतुके प्रयोगमात्र हीकरि साध्यकी सिद्धि है, दृष्टान्तादिकका प्रयोजन नाहीं ॥ ९२॥ - आगैं इस ही कारणकरि पक्षका प्रयोग है सो भी सफल है ऐसैं दिखावते संते कहैं हैं;... तेन पक्षस्तदाधारसूचनायोक्तः ॥ ९३ ॥
याका अर्थ-जा कारणकरि पूर्वोक्त विधानही करि व्याप्तिकी प्रतिपत्ति होय तिस कारणकरि तिसका आधारका सूचन कहिये साध्यतै व्याप्त जो साधन ताके आधारके सूचनेकै अर्थि पक्ष कह्या है । इस कहनेकरि बौद्धमती कहै है ताका निराकरण किया, बौद्धमतीका श्लोकका
ऐसैं परोक्ष प्रमाणके भेदनिविर्षे अनुमानका निरूपण किया।
. १ ततो यदुक्तं पेरण;
तद्भावहेतुभावी हि दृष्टान्ते तदवेदिनः । ख्याप्यते विदुषां वाच्यो हेतुरेव हि केवलः ॥१॥