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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
बहुरि इहां कोई कहै -- याका प्रतिपक्षका साधन हेतु है, ताका प्रयोग -तनु आदि बुद्धिमान हेतुक नांही है जातै देख्या है कर्त्ता जाका ऐसा जो प्रासाद आदिक तिनितैं यह तनु आदि विलक्षण हैं, प्रासाद आदि सारिखे नांही, जैसैं आकाश आदिक है, ऐसैं याका प्रतिपक्षका हेतु है तनु आदिककै अकर्त्ताकूं साधै है, तातैं कार्यत्व हेतु प्रकरणसम है । ताकूं नैयायिक कहै है - यह कहनां अयुक्त है जातैं इस हेतु कै असिद्धपणां है, संनिवेशविशिष्टपणांकरि प्रासादादिकतैं समानजातीयपणांकरि शरीरादिकका उपलंभ है जैसैं प्रासादादिकका आकार रचनाविशेष है तैसे ही शरीरादिकका आकार ऐसा ही रचना विशेष है । बहुरि कहोगे जैसा प्रासादादिकविषै संनिवेशविशेष देखिये है तैसा तनुशरीर आदि विषै नांही तौ सर्व ही एकसे सर्वस्वरूप तौ होय नांही कोई मैं किच्छू विशेष होय कोई मैं किछू होय । अतिशयसहित संनिवेश होय सो सातिशय कर्ताकूं जनाबे है, जैसें प्रासादादिक, जो प्रासाद सुन्दर वर्णै तब जानिये चतुर कारीगरनैं वणाया है । बहुरि कोईका तौ कर्त्ता दृष्ट है— जानिये है फलाणांनैं बनाया है अर कोईका कर्त्ता अदृष्ट है जाण्यां न पड़े है तौ इनि दाऊ रीतितैं तौ बुद्धिवानका किया अर बुद्धिवान न किया स्वयमेव है ऐसा सिद्ध होय नांही । मणि मोती आदिका कर्त्ता कौंननैं देख्या ये स्वयमेव भये ठहरे हैं, ऐसें संनिवेशविशेष हेतु सिद्ध है । इस ही कथनकरि अचेतन उपादानपणां आदि हेतु भी दृढ़ किया । ऐसैं बुद्धिवान हेतुक तनु आदि है ऐसा भलै प्रकार कह्या हुवा बणै है । इस ही हेतु तैं सर्वज्ञपण सिद्ध होय है । ऐसें नैयायिकनैं अपना मत दृढ़ किया ।
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ताका समाधान आचार्य करे है; — जो यहु कहनां अनुमानरूप मुद्रा करनेंकूं धनकरि रहित दरिद्रीके वचन है जातैं कार्यत्व आदि हेतु