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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितसंस्कारोबोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः ॥३॥ याका अर्थ-संस्कारका जो उद्बोध कहिये प्रगट होना सो है निबंधन कहिये कारण जाकू, बहुरि तत् कहिये पूर्वै अनुभवमैं आया था ताका 'सो है' ऐसा यादि आवनां ऐसा जाका आकार है ऐसी स्मृति है। इहां 'भवति' ऐसी क्रिया सूत्रमैं वाक्यशेषतैं लेनी ॥ ३ ॥ आगैं याका उदाहरण कहैं हैं;
स देवदत्तो यथा ॥४॥ याका अर्थ-जैसैं पहले काहू पुरुषकू देख्या था सो वर्तमानमैं मनविर्षे यादि आया जो ‘सो फलाणां पुरुष ' ऐसा स्मृति प्रमाण है ॥ ४॥
आरौं प्रत्यभिज्ञानप्रमाण कहनेका अवसर हे सो कहैं हैं;
दर्शनस्मरणकारणकं सङ्कलनं प्रत्यभिज्ञानं तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि ॥५॥
याका अर्थ-वर्तमानका दर्शन-पूर्व देख्या ताका स्मरण ये दोन्यों है कारण जाकू ऐसा जोड़रूप ज्ञान ताकू प्रत्यभिज्ञान कहिये । सो च्यार प्रकार है-वर्तमानमैं काहू वस्तुकू देखिकरि अर ताकू पूर्वै देख्या था ताकू यादिकरि ऐसा जान्यां जो 'यह सो ही है। ऐसा तौ एकत्वप्रत्यभिज्ञान है । बहुरि वर्तमानमैं देख्या तिस सारिखा पूर्वै देख्या था ताकू जान्या जो 'यह तिस सारिखा है' सो सादृश्य प्रत्यभिज्ञान है। बहुरि वर्तमानमैं काहूकू देखिकरि तिस विलक्षण पूर्वै देख्या था ताकू यादिकरि तिसतै विलक्षण जान्यां जो 'यह तिसतै विलक्षण है' सो त. द्विलक्षण प्रत्यभिज्ञान है । बहुरि पूर्वै देख्या था तिसका वर्तमानमैं प्रतियोगी कहिये जिसतै अवश्य जोड़ मिली जाय ऐसा अन्यपदार्थकू देखि