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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
पक्षप्रयोगका अवश्य भाव होते निश्चयतें कौन पक्ष नांहीं करै है, अवश्य करै ही है । कहा करता संता ? हेतुका समर्थन करता संता-हेतुकू कह करि ही समर्थ है विना कहे नांहीं समर्थं है । इहां समर्थनका स्वरूप ऐसा-जो हेतुका असिद्धपणां आदि दोषका परिहारकरि अपनें साध्यकू अर साधनकू सामर्थ्यरूप प्ररूपणा करनेंकू समर्थ वचन होय सो ही समर्थन है । सो हेतुके प्रयोगकै पीछे बौद्धमतीकरि अंगीकार किया है ता” सूत्रमैं उक्त्वा' ऐसा वचन है ॥ ३१॥
अब इहां सांख्यमती कहै है—जो पक्षका प्रयोग तो होहु परन्तु पक्ष, हेतु, दृष्टांत, भेदकरि अनुमानके तीन ही अवयव हैं । बहुरि मीमांसक कहै है-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, भेदकरि च्यार अवयवस्वरूप अनुमान है। बहुरि यौग कहिये नैयायिक कहै है-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन, भेदतैं पांच अवयवस्वरूप अनुमान है। तिनिके मतकू निराकरण करते संते अपनें मतवि सिद्ध जो अनुमानके अवयव दोय तिनिहीकू दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;
एतद्धयमेवानुमानाङ्गं नोदाहरणम् ॥ ३२ ॥ याका अर्थ-अनुमानके अवयव पक्ष अर हेतु ये दोय ही हैं अर उदाहरण नाही है । ये पक्ष अर हेतु तिनिका द्वय कहिये द्विक सो ही अनुमानके अंग हैं अधिक नाही हैं। इहां एवकारकरि उदाहरण आ. दिका निषेध सिद्ध होतें भी परमतके निराकरणकै आर्थि फेरि उदाहरण
नांही है ऐसा वचन कह्या है ॥३२॥ ..आगैं सो उदाहरण कहा साध्यकी प्रतिपत्तिकै अर्थि है कि हेतुकै
अविनाभावके नियमकै अर्थि है कि व्याप्तिके स्मरणकै अर्थि है ? ऐसैं तीन विकल्पकरि तिनिकू दूषणरूप करते संते सूत्र कहैं हैं;-...