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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
साधिये है ताके सन्देह दूर करनेकू जाननेमैं भी आया जो पक्ष ताका वचनकार प्रयोग करना। साध्य सो ही धर्म ताका आधार ताविौं संदेह पडै जो अग्निकू पर्वत आदिमैं साधिये है कि महानस आदिमैं ? ऐसा सन्देहका अपनोद जो दूर करनां तिसकै अर्थि गम्यमान भी जो सा. ध्यका आधार पक्ष ताका वचन कहनां-प्रयोग करनां । इहां पक्षका गम्यमानपणां ऐसैं है जो साध्यसाधनकै व्याप्यव्यापकभाव दिखावनेकी अन्यथा अप्राप्ति है । साध्य साधनकै व्याप्यव्यापकभाव दिखावते तिसके आधारस्वरूप पक्षकू भी जानिये है तौ ऊपरके सन्देह दूर करने• पक्षका वचन कहनां युक्त है ॥ २९ ॥
आगें याका उदाहरण कहैं हैं;- .
साध्यधर्मिणि साधनधर्मावबोधनाय पक्षधर्मोपसंहारवत् ॥ ३०॥
याका अर्थ-साध्यकरि विशिष्ट जो धर्मी पर्वतादिक ताविर्षे साधन धर्मका जाननेकै अर्थि जैसैं पक्षधर्मका उपसंहाररूप जो उपनय ताका प्रयोग करिये है तैसैं पक्षका भी प्रयोग करनां । साध्यकरि विशेषणरूप जो धर्मी पर्वतादिक तहां साधनधर्मकै जाननेंकै अर्थि जैसैं पक्षधर्मका उपसंहाररूप उपनय कहिये है जातै पक्षधर्म जो हेतु ताका उपसंहार कहिये संक्षेप करनां सो उपनय है जैसैं अग्निमानू साध्यका प्रयोगविर्षे धूमवान् यहु है ऐसा उपनय कहनां ताकी ज्यों पक्षका भी प्रयोग युक्त है । इहां यह अर्थ है-जो साध्यौं व्याप्त जो साधन ताकै दिखावनेंकरि तिस हेतुके आधारका जाणपणां होते भी नियमरूप जो धर्मी ताका संबंधीपणांकै दिखावनेकू जैसे उपनयका प्रयोग करिये है तैसैं साध्यकै. विशिष्ट जो धर्मी ताका संबंधीपणा जनावनेकू पक्षका भी वचन कहनां ।