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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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याका अर्थ—सो उदाहरण परं कहिये केवल कह्या हुआ साध्यके धर्मीविर्षे साध्य अर साधनकू संदेहसहित करै है । जाते दृष्टान्तका धर्मीविर्षे साध्यतैं व्याप्त जो साधन ताकू दिखावतें भी साध्यके धर्मीवि तिस साध्यका अर साधनका निर्णयका करनेका अशक्यपणां है ऐसा वाक्यशेष है । भावार्थ-उदाहरण कह्या हुवा साध्य साधनकू संदेहरूप करै है ॥ ३७॥ ___ आगें इस ही अर्थकू व्यतिरेककू प्रधानकरि दृढ़ करते संते हैं
कुतोऽन्यथोपनयनिगमने ॥ ३८॥ याका अर्थ-जो उदाहरण कहें संदेह न उपजता तौ उपनय अर निगमन इनि दोऊनिका प्रयोग काहेकू करते । जातें यह जान्यां जो उदाहरणके प्रयोग” संशय होय है ॥ ३८॥
आगैं नैययिक कहै है-जो उपनय निगमन इनि दोऊनिकै भी अनुमानका अंगपणां है, जो इनिका प्रयोग न कीजिये तो निर्दोष साध्यकी सिद्धिका अयोग है तिसके निषेधकै अर्थि सूत्र कहैं हैं;
न च ते तदङ्गे, साध्यधर्मिणि हेतुसाध्ययोर्वचनादे-.. वासंशयात् ॥ ३९॥
याका अर्थ-ते उपनय निगमन भी तिस अनुमानके अंग ही नांहीं हैं जाते साध्यके धर्मीविय हेतु अर साध्यके वचननै संशयका निराकरण है । उपनय निगमनका स्वरूप आगें कहसी । अर इहां एवकारकरि ऐसा जाननां जो दृष्टान्त आदिके प्रयोग विना ही प्रतिज्ञा हेतु” ही साध्यकी सिद्धि होय है-संशय मिटि जाय है; ऐसा भावार्थ . है ॥ ३१॥