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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
ऐसें न कहनां, जाते वचन तौ अचेतन है सो अचेतनकै साक्षात् प्रमिति जो प्रमाणका फल ताका कारणपणां नांही है, तातें मुख्य प्रमाणपणांका अभाव है, बहुरि मुख्य अनुमानके कारणपणांत तिस वचनकै उपचरित अनुमानका व्यपदेश कहिये नाम कहनां सो नाहीं निवारण कीजिये है ॥ ५० ॥
आगें परार्थानुमानके वचनकै जो कह्या उपचारकरि परार्थानुमानपणां सो ही आचार्य सूत्रकरि कहैं हैं;
तद्वचनमपि तद्धतुत्वात् ॥ ५१ ॥ याका अर्थ-तिस परार्थानुमानका वचन है सो भी परार्थानुमान है जारौं ज्ञानरूप जो परार्थानुमान ताका कारण है । इहां ऐसा जाननांजो उपचार है सो मुख्यका अभाव होते प्रयोजन अर निमित्त होते प्रवर्ते है । तहां वचनकै मुख्य अनुमानपेणांका तौ अभाव है अर तिसका कारणपणां है सो ही परार्थानुमानपणांविषै निमित्त है तातें परार्थानुमानका प्रतिपादक वचन भी परार्थानुमान है ऐसा संबंध करना, जाते कारणविर्षे कार्यका उपचार होय है। अथवा परार्थानुमानका प्रतिपादक जो वक्ता ताका अनुमान सो है कारण जाकू ऐसा परार्थानुमानका वचन सो भी अनुमान है ऐसा संबंध करनां, इस पक्षविर्षे कार्यवि. कारणका उपचार होय है । बहुरि वचनकै अनुमानपणां कहतें प्रयोजन ऐसा जो अनुमानके प्रतिज्ञा आदि अवयव हैं तिनिका शास्त्रवि व्यवहार है सो ही प्रयोजन है जाते ज्ञानस्वरूप अनुमान निरंश है अभेदरूप है । तातें अवयवरूप भेदका व्यवहार नाही कियाजाय है वचनकरि अवयवनिका प्रयोगरूप व्यवहार प्रवर्ते है ॥ ५१ ॥ __ आगैं सो एसैं 'साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानं' ऐसा अनुमानका सामा. य लक्षण है सो ही अनुमान दोय प्रकार है ऐसैं तिसके प्रकार विस्ता