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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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हिणां सींग है तिनिकी साथ उत्पत्ति है परस्पर कार्यकारणभाव नाही तैसैं जाननां । बहुरि एककाल उप● तिनिकै कार्यकारणभाव मानिये तौ कार्यकारणकै प्रति नियमका अभावका प्रसंग आवै । इहां एक वस्तुवि. दोय भाव तिष्ठें तौऊ तिनिकै स्वरूपभेदतै तादात्म्य न (2) कहिये, जैसैं रूप-रसमैं स्वरूप भेद है अर एकवस्तुमैं दोऊ है ही । बहुरि जिनिकै साथ उत्पाद नांही ऐसे धूम अग्नि आदि तिनिकै कार्यकारणभाव है ही। तातैं सहचर न्यारा ही हेतु है ॥ ५९॥ ___ आगैं अब कहे हेतुनिके उदाहरण कहैं हैं । तहां पहले क्रममैं आया जो व्याप्यनामा हेतु ताहि उदाहरणरूप करते संते कहे जे अन्वय व्यतिरेक तिनिकू प्रधानकरि शिष्यके आशयके वश” कहे जे अनुमानके प्रतिज्ञादिक पांच अवयव तिनिकू दिखावै है;
परिणामी शब्दः कृतकत्वात्, य एवं स एवं दृष्टो यथा घटः, कृतकश्वायं, तस्मात्परिणामीति, यस्तु न परिणामी स न कृतको दृष्टो यथा वंध्यास्तनंधयः, कृतकवायं, तस्मात्परिणामी ॥६॥ ___याका अर्थ-शब्द है सो परिणाभी है यह तौ प्रतिज्ञा है, जातें कृतक है यहु हेतु है, जो कृतक है सो परिणामी देखिये है जैसैं घट है यहु अन्वयव्याप्तिपूर्वक उदाहरण है, बहुरि यहु शब्द कृतक है यह उपनय है, तातै परिणामी है यहु निगमन है । ऐसें तौ अन्वयव्याप्तिकरि पंच अवयव दिखाये, बहुरि जो परिणामी नाही है सो कृतक नाही देखिये है जैसैं बांझका पुत्र यहु व्यतिरेकव्याप्तिपूर्वक उदाहरण है । अरु यहु शब्द कृतक है तातै परिणामी है। ये व्यतिरेकव्याप्तिकार दिखाये ते पांचूं ही समझनें । इहां अपनी उत्त्पत्तिविर्षे जो परके व्यापारकी अपेक्षा करै ऐसा भाव होय सो कृतक कहिये । सो ऐसा कृतक.