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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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न हि तत्साध्यप्रतिपत्त्यङ्गं तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥३३॥
याका अर्थ-यह उदाहरण है सो साध्यकी जो प्रतिपत्ति ताका अंग नाही है जातें साध्यविषै तौ जैसा हेतु कह्या तिसहीका व्यापार है । इहां तत् कहिये उदाहरण सो साध्यकी प्रतिपत्ति कहिये साध्यका ज्ञान ताका अंग-कारण नाही है ऐसा संबंध करना जारौं तिस साध्यकी प्रतिपत्तिविषै यथोक्त जो साध्यतै अविनाभावीपणांकरि निश्चय किया हेतु तिसहीका व्यापार है ॥ ३३ ।।
आगें दूसरे विकल्पकू शोधता संता सूत्र कहैं हैं;तदक्निाभावनिश्चयार्थ वा विपक्षे बांधकप्रमाणबलादेव तत्सिद्धेः ॥ ३४ ॥ __याका अर्थ-'तत्' ऐसी अनुवृत्ति लेनी, बहुरि 'न' ऐसा निषेध की भी अनुवृत्ति लेनी, ताकरि यह अर्थ भया—जो उदाहरण तिस साध्यकरि हेतुका अविनाभाव निश्चय करनेकै अर्थ नाही है जातें विपक्षविर्षे बाधक प्रमाणके बलते ही अविनाभावनिश्चयकी सिद्धि होय है ॥३४॥
बहुरि किछू विशेष कहैं हैं;-जो उदाहरण तौ व्यक्तिरूप है, सामान्यके बहुत विशेष होय तिनिमैं एक विशेषकू व्यक्ति कहिये, सो व्याप्तिकू समस्तपणकरि कैसैं गमक होय, तिस व्यक्तिविषै व्याप्तिकै आर्थ अन्य उदाहरण हेरनां पड़े है ताकै भी व्यक्तिरूपपणांकरि सामान्यरूप जो व्याप्ति ताका निश्चय करनेका असमर्थपणां है या” और
१ मुद्रित संस्कृत प्रतिमें 'बाधकप्रमाणबलादेव' इसके स्थानमें 'बाधकादेव' इतना ही पाठ है।