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९८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित___ याका अर्थ-परकू प्रतीति उपजावनें• इच्छा वक्ता ही की है तातें इष्ट वादीहीकी अपेक्षा है । जो इच्छाका विषय ताकू इष्ट कहिये ताकी परकू प्रतीति कहनेवाला ही उपजावै तातें ताहीकी इच्छा कही ॥१९॥ __ आगें पूछे है कि यह साध्य धर्म है कि इस साध्य धर्मकरि विशिष्ट धर्मी है ? ऐसैं प्रश्न होते तिसका भेद दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;
साध्यं धर्मः कचित्तद्विशिष्ठो वा धर्मी ॥२०॥ याका अर्थ-धर्म है सो साध्य है, बहुरि कोई जायगां तिस साध्यधर्मकरि विशिष्ट धर्मी है सो साध्य है । जाकै आधार साध्य वस्तु होय सो धर्मी कहिये तिसकी अपेक्षा साध्यकू धर्म कहिये । इहां ऐसा अर्थ है-जो व्याप्तिकालकी अपेक्षाकरि तौ साध्यनामा धर्म ही साध्य है, बहुरि कोई जायगां प्रयोगकालकी अपेक्षा तिस साध्यधर्मकरि विशिष्ट धर्मी साध्य है जाते सूत्रके वाक्य हैं, ते उपस्कारसहित होय हैं, सूत्रमैं पद ऊपरतें लाइये ताकू उपस्कार कहिये सो इहां अपेक्षाका पद उपरतें आया है । इहां भावार्थ ऐसा-जो धर्मीकै साध्यपणां तौ प्रयोग कालहीविर्षे कोई ठिकानै है । जहां अनुमानकै प्रतिज्ञा हेतु आदि अवयव वचनकरि कहिये ताकू प्रयोग कहिये । अर जहां व्याप्ति जनाइये तहां साध्य धर्महीनै जोड़िये है साधनकै साध्य धर्महीतैं है ॥२०॥ ___ आरौं साध्यधर्मकरि विशिष्ट जो धर्मी तिसका नामान्तर कहिये अन्य नाम कहैं हैं;
पक्ष इति पावत् ॥२१॥ याका अर्थ-जाकै आधार साध्य होय सो धर्मी कहिये ताहीका दूसरा नाम पक्ष भा है। इहां प्रश्न-जो धर्मधर्मीका समुदाय सो पक्ष है ऐसा पक्षका स्वरूप पुरातन आचार्य अकलंक देव आदिकरि कह्या है सो इहां