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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
विनाभावपणाकू ही अन्यथानुपपन्नपणां ऐसा नाम कहिये, सो यहु अन्यथानुपपन्नपणां असिद्ध हेतुकै संभवै नांही । जातें ऐसा कह्या है जो अन्यथानुपपन्नपणां असिद्धकै नांही सिद्ध होय है । बहुरि विरुद्धहेतुकै भी तिसके लक्षणकी उपपपत्ति नाही बण है जातें साध्यतै विप. रीत अविनाभावस्वभावरूपविर्षे साध्यतै अविनाभावनियमलक्षणकी अनुपपत्ति है जातें दोऊनिकै विरोध है। बहुरि व्यभिचारी हेतुवि भी तिस प्रकृत कहिये कह्या लक्षणका अवकाश नांही है जाते विरुद्धविर्षे हेतु सो ही इहां जाननां । तातें हेतुका स्वरूप अन्यथानुपपत्ति ही श्रेष्ठ है अर तीन रूपता श्रेष्ठ नांही है। जाते तिस त्रिरूपताकै हो” भी यथोक्तलक्षणका अभाव होते हेतुकै साध्य प्रति गमकपणां नाही देखिये है, सो ही कहिये है-जैसैं काहूकै पहले पांच पुत्र भये थे ते श्याम भये थे तिनिकू देखिकरि तिनिकी ज्यों ही ताकी स्त्रीकै गर्भविषै तिष्ठताकै भी तिसपुत्रपणां नामा हेतु" श्यामपणां साधनेमैं तीनरूपपणां तौ संभव है-जातें गर्भमैं तिष्ठताकै तिसके पुत्रपणां है यह तौ पक्षधर्मपणां भया । बहुरि सपक्ष अन्य पुत्रनिमैं तिसके पुत्रपणां है ही । बहुरि अन्यके पुत्रमैं गौरपणां है तिनि विपक्षनितें व्यावृत्ति है ही । ऐसें तीनरूप होतें भी साध्य जो श्यामपणां तिस प्रति गमकपणां नाही, गर्भमैं तिष्ठता गौर भी होय तौ बाधक कहा । इहां बौद्ध कहै—जो इस हेतुमैं विपक्ष” व्यावृत्ति नियमरूप नाही दीखै है तातें गमकपणां नाही ? ताकू कहिये-जो यह कहना भी मुग्धका विलास हैं, जाते तिस विपक्षतँ व्यावृत्ति कहिये न्यारापणांक ही अविनाभावरूपपणां है, अन्य दोयरूपका सद्भाव होय अरु विपक्ष” व्यावृत्ति न होय तौ हेतुकै अपने साध्यकी सिद्धि प्रति गमकपणांकी अनिष्टि होते सो विपक्ष” व्यवृत्ति ही हेतुका निर्बाध लक्षण करनां