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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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जारौं ताका सद्भाव होते अन्य दोयरूपकी अपेक्षा विना ही साध्य प्रति गमकपणां बनै है । इहां उदाहरण-जैसैं अद्वैतवादीकै प्रमाण है जातें अपने इष्टका साधन अनिष्टका दूषणकी अन्यथा अप्राप्ति है प्रमाण विना साधन-दूषण बणे नाही । इस हेतुमैं पक्षधर्मपणां नांही है सपक्षविर्षे अन्वय भी नांही है, केवल एक अविनाभावमात्रहीकरि साध्य प्रति गमकपणांकी प्रतीति है साध्यकू साधै है । बहुरि बौद्धादिकनैं और भी कही है-जो पक्षधर्मपणांका अभाव होतें भी हेतुडूं गमक कहिये तौ काकके कृष्णपणांतें यह प्रासाद कहिये महल धवल है ऐसैं हेतुकै भी गमकपणां आवै है, भावार्थ-कोई श्वेत महल था तापरि काक बैठा था तहां काहूनें कह्या जो महलकू धवल कहिये है सो काकके कालापणांकी अपक्षातें साधिये है, ऐसे कहे काकका कृष्णपणां पक्ष जो प्रासाद ताका धर्म नाही अर पक्षधर्म विनां हेतुकै गमकपणां नाही । ताका समाधान आचार्य करै है-जो यह कहनां भी इस ही कथनकरि निराकरण किया जातें अन्यथानुपपत्तिका बलहीकरि पक्षधर्मरहित हेतुकै भी साधुपणां मान्या है, सो इस तेर प्रयोगमैं अन्यथानुपपत्ति नांही है । तातैं हेतुका स्वरूप अविनाभाव ही प्रधान है जाकू अन्यथानुपपत्ति भी कहिये सो ही अंगीकार करना, जातें अविनाभावकू होते तीनरूपपणां न होतें भी हेतुकै साध्य प्रति गमकत्वका दर्शन है। तातें तीनरूपपणां हेतुका लक्षण नांही है जाते याकै अव्यापकपणां है, सो ही कहिये है--बौद्ध आप मान है जो जहां सर्व पदार्थनिविौं क्षणिकपणां साध्य थापै है ताका सत्त्व आदि साधन थापै है ताका सपक्ष नाही है सर्वहीकू साधतें () पक्षमैं सर्व आय गये सपक्ष न रह्या तब तहां त्रिरूपपणांकी हानि भई तौऊ गमकपणां मानैं है । बहुरि इस ही कथनकरि नैयायिक हेतुकै पंचरूपपणां मानें है सो भी नांही बर्षे है ऐसे कह्या