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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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किया है जातें पूर्वै खोदता देख्या था तथा काहूके वचन" निश्चय किया था तहां ऐसा संकेत भया था जो खोदेरौं आकाश नीकसैं है तातैं इहां कृतबुद्धि उपजै है। इहां कहै-जो यह बुद्धि तौ मिथ्या है तौ तेरी भी बुद्धि अन्यवि किये उपजै है सो मिथ्या क्यों न होय ? बाधाका सद्भाव अर प्रतिप्रमाण विरोधका अन्यविर्षे समानपणां है, जो आकाशविर्षे कृतबुद्धिमैं बाधक बतावैगा सो ही तन्वादिकमैं आवैगा, बहुरि कर्ताका ग्रहण दोऊ ही जायगां प्रत्यक्ष नांही है । इहां प्रमाणकी समानताका प्रयोग ऐसा-पृथिवी आदिक हैं ते बुद्धिमान हेतुक नाही हैं जातें हम आदिककै नांही ग्रहण करने योग्य याका परिमाण अर आधार है, जैसा आकाश आदिकका परिमाण आदि नांही ग्रहणमैं आवै है तैसैं यहु भी है ऐसा प्रमाण पृथिवी आदिका कर्ताका निषेधका समान है । तारौं कृतसमय कहिये जानैं संकेत किया ताकै तौ पृथिवी आदिकवि. कृतबुद्धिका उपजावनहारापणां नाही है। बहुरि अकृतसमय कहिये नाही किया है संकेत जानैं ताकै भी कृतबुद्धिका उपजावनहारा नांही है जातँ यह असिद्ध है विना संकेत किये कृतबुद्धि उपजै नांही जो उपजै तौ विप्रतिपत्ति नाही होय सर्वहीकै उपजै । कोई कहै-जो अग्नि शीतल है तौ जाकै अग्निका संकेत नाही सो ऐसैं जानैं जो शीतल ही होगी यामैं संदेह न उपजै तैसैं पृथिवी आदि कार्य काहूके किये बतावै तौ किये ही मानें न किये बतावै तौ विना किये ही मानैं ।
बहुरि चौथा पक्ष कारणव्यापारानुविधायिपणां है, याका अर्थ यह-जो जैसा कारणका व्यापार होय तिसकै अनुसार तैसा ही कार्य होय । सो इहां दोय पक्ष पूछिये, तहां जो कारणमात्र ही की अपेक्षा कहै तो यह विरुद्ध होय जातें कार्य तौ अबुद्धिमानके किये भी होय