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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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होते देखिये है । बहुरि कहै जो शिव तिनि कार्यनिविर्षं भी अवश्य कारण है तो ऐसा कहनां अतिमुग्धका विलास है जातें तहां शिवका व्यापारका असंभव है जातें शिव शरीररहित है अर ज्ञानमात्र ही करि कार्यकारीपणां बणै नाही, बहुरि इच्छा अर प्रयत्न ये दोऊ शरीरविनां संभवै नांही, ताका असंभव आप्तपरीक्षा आदि ग्रंथनिविर्षे पुरातन बड़े आचार्यनिकरि विस्तारकरि कह्या है तातै इहां नांही कहिये है । बहुरि जो महेश्वरकै क्लेश आदिका रहितपणां अर निरतिशयपणां अर ऐश्वर्य आदि सहितपणां कह्या सो सर्व ही आकाशके कमलकी सुगंध ताका वर्णन सारिखा है जातें जाका आधार सिद्ध होय नाही तातें हमारै आदरने योग्य नाही । तातैं महेश्वरकै सर्वज्ञपणां कहै सो नाही। ___ बहुरि ब्रह्मकै सर्वज्ञपणां कहै सो भी नांही है जातें ताका सद्भावका कहनेवाला जनावनेवाला प्रमाणका अभाव है। तहां प्रथम तो प्रत्यक्ष. प्रमाण ताका जनावनेवाला नाही है, जो प्रत्यक्ष ब्रह्म दीखै तौ विप्रतिपत्ति नाही होय, सन्देह काहेर्दू होय । बहुरि अनुमान भी ताका सिद्धि करनेंवाला नांही है जातें ब्रह्मतें अविनाभावी जो लिंग ताका अभाव है लिंग विना अनुमान कैसैं होय । - इहां ब्रह्मवादी कहै है-प्रत्यक्षप्रमाण ब्रह्मका ग्राहक है ही जातें नेत्र उघाडिकरि देखें लगता ही निर्विकल्प अभेदरूप सत्तामात्रकी विधि दीखे है ताका विषयपणांकरि प्रत्यक्षकी उत्पत्ति है, सर्व वस्तु एक सत्तारूप भासै है, बहुरि जो सत्ता है सो ही परमब्रह्मका स्वरूप है, ताका श्लोकका अर्थ-प्रथम ही आलोचना कहिये दर्शन१ तथा चोक्तम्
अस्ति ह्यालोचनाज्ञानं प्रथमं निर्विकल्पकम् । बालमूकादिविज्ञानसदृशं शुद्धवस्तुजम् ॥१॥ .