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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
सत्ताका जनावनहारा कह्या ? तहां प्रथम पक्ष तौ न ब है जातैं सत्ताकै सामान्यरूपपणां है तातैं विशेषकी अपेक्षारहितपणांकरि सत्ताका प्रतिभास होय नांही जैसैं गोत्वसामान्य है सो काबरा धोला आदि विशेषरहित प्रतिभासता नांही, जातैं ऐसा कह्या है जो विशेषरहित सामान्य है सो मुस्साके सींगसमान अवस्तु है, बहुरि सामान्यरूपपणां सत्ताका सत् सत् ऐसा अन्वयरूपबुद्धिका विषयपणांकरि प्रसिद्ध ही है । बहुरि दूसरा पक्ष हैगा तौ परमपुरुषकी सिद्धि न होयगी जातैं परस्पर न्यारे न्यारे हैं आकार जिनके ऐसे विशेषनिका प्रत्यक्ष प्रतिभास होय है । बहुरि अनुमानका साधन का जो प्रतिभासमानपणां सो भी समीचीन नांही जातैं विचार मैं बनता नांही । तहां दोय पक्ष पूछें हैं - यह प्रतिभासमानपणां स्वतैं होय है कि परतैं होय है ? जो कहैगा स्वतै होय है तौ नांही बणैगा जातैं हेतु असिद्ध है जातैं पदार्थनिका स्वयमेव प्रकाशन है तौ नेत्र मीचिये अथवा प्रकाश नांही होय तहां भी प्रतिभासनां होहु सो नांही होय है तातें असिद्ध है । बहुरि कहैगा परतैं होय हैं तौ विरुद्ध है पर प्रतिभासनां पर विना न बण, बहुरि प्रतिभासमात्र भी नांही सिद्ध होय है जातैं तिस प्रतिभासकै ताके विशेषनितैं अविनाभावीपणां है, बहुरि प्रतिभासकै विशेष मानिये तौ द्वैतका प्रसंग आया । बहुरि किछू विशेष कहै है - अनुमानका उपायभूत जे धर्मी हेतु दृष्टांत ये प्रतिभासै है कि नांही ? जो कहैगा प्रतिभासै है तौ प्रतिभासमांही प्रवेश भये प्रतिभासै है कि तातैं बाह्य न्यारे प्रतिभासै है ? जो कहँगा प्रतिभासमांही प्रतिभासे है तौ साध्यकै मांही ही आय पड़े तिनितैं अनुमान कैसे होय, बहुरि प्रतिभासकै बाह्य प्रतिभासैं है तौ तु तिनिहीकरि व्यभिचार भया । बहुरि जो कहै - प्रतिभासैं नही है तो धर्मी आदिकी व्यवस्थाका अभाव है तब तिनि विना
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