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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
क्यों नांही कहे । अर्थ कहिये वस्तु ताकरि भी ज्ञान उपजै है अर आलोक कहिये प्रकाशकरि भी ज्ञान उपजै है इनिङ विना कहे कारणनिका सकलपणांका संग्रह न भया तब शिष्यजनकै भ्रम ही रहेगा जातें कारण एते हैं ऐसा निश्चय न होयगा। जो परम करुणावान भगवान हैं तिनकै शिष्यजनकै भ्रम होय ऐसी चेष्टा न होय है ऐसी आशंका नैयायिककी दूरि करनेः सूत्र कहैं हैं;- नार्थालोको कारणं परिच्छेद्यत्वात्तमोवत् ॥६॥ __ याका अर्थ- अर्थ कहिये वस्तु अर आलोक कहिये प्रकाश ये दोऊ ही सांव्यवहारिक प्रत्यक्षकू कारण नाही हैं जातें ये परिच्छेद्य कहिये जानने योग्य ज्ञेय हैं। जैसैं अंधकार ज्ञेय है तैसे ही ये हैं । याका अर्थ सुगम है तातै टीकाकार टीका न करी है ।
इहां बौद्धमती तर्क करै है----जो बाह्य आलोकका अभाव सो ही अंधकार है इसनै न्यारा किछू अन्धकार वस्तु है नांही ताः सूत्रमैं अन्धकारका दृष्टान्त साधनविकल है-यामैं साधन नाही ? ताकू आचार्य कहैं हैं;-जो ऐसैं नाही है जो ऐसे होय तो बाह्यप्रकाशकू भी ऐसे कहिये, जो अंधकारका अभाव सो ही प्रकाश, इस सिवाय अन्य किळू वस्तु नाही । ऐसें तौ तेजवान पदार्थ हैं तिनिका असंभव आवै है । सो याका विस्तारकरि निरूपण प्रेमयकमलमार्तण्ड याकी बड़ी टीका ताका नाम याका अलंकार है तामैं प्रतिपादन किया है सो जाननां ॥६॥
आगैं इस सूत्रके साध्यकू साधनेंविर्षे अन्यहेतु कहै है;तदन्वयव्यतिरेकानुविधानाभावाच केशोण्डुकज्ञानवन्नक्तश्चरज्ञानवच्च ।। ७॥ ___याका अर्थ-अर्थ बरालोक सांव्यवहारिकप्रत्यक्षके कारणपणांका अन्वय गतिश्या झबुनियातही अभाव है। ऐसा नियम नाही
વિજય