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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
स्त्यकरि विपक्षकै विर्षे वृत्तिका अभाव है। बहुार कालात्ययापदिष्ट भी नही है जातें यातें विपरीत अर्थका स्थापनेवाला प्रत्यक्षप्रमाण तथा आगमप्रमाणका अभाव है । बहुरि सत्प्रतिपक्ष भी यह हैतु नाही है जातें इसका प्रतिपक्षसाधनेका हेतुका अभाव है।
इहां मीमांसक कहै है-जो याका प्रतिपक्षका साधनका अनुमान यह है ताका प्रयोग-विवादमैं आया जो पुरुष सो सर्वज्ञ नाही है जाते वक्ता है, पुरुष है, हास्तदिकसहित है ऐसें तीन हेतु” पुरुष सर्वज्ञ नांही जैसे हरेक गैलै चालता पुरुष सर्वज्ञ नाही तैसैं ? ताका समाधान आचार्य करै है;जो यह कहनां सुन्दर नाही जाते वक्तापणां आदि तीन हेतु कहे ते समीचीन भले हेतु नाही । इहां तीन पक्ष पूछिये, जो वक्तापणां कह्या सो प्रत्यक्ष-अनुमान” विरुद्ध अर्थका वक्तापणां कहा कि अविरुद्ध अर्थका वक्तापणां कह्या कि वक्तपणां सामान्य कह्या ? इनि तीन सिवाय चौथी गति नांही है । तहां प्रथमपक्ष तौ न बणै हैं याकै तौ सिद्धसाध्यपणांका प्रसंग हे जाते प्रत्यक्ष अनुमान” विरुद्ध अर्थ कहै सो सर्वज्ञ काहेका ? बहुार दूसरा पक्ष कह्या सो यह विरुद्ध है जातै प्रत्यक्ष अनुमान” विरुद्ध अर्थ कहै सो ऐसा वक्तापणां तौ ज्ञानके अतिशयविना न बणें जामैं ज्ञान बहुत होय सो ही वक्ता सत्यवादी होय । बहुरि वक्तापणां सामान्य है सो भी विपक्ष” अविरुद्ध है । तातै प्रकरणगोचर जो साध्य असर्वज्ञपणां ताकू साधनेंविर्षे समर्थ नाही । ज्ञानकी बधवारी होतें वक्तापणांकी हानि दीखै नाही, उलटा ज्ञानकी बधवारीवालाकै वचनकी प्रवृत्तिकी बधवारीका संभव है । इस ही कथनकरि पुरुषपणां हेतु भी निराकरण किया। पुरुषपणां होतें जो रागदिदोषदूषत होय तौ सिद्ध साध्यता ही है ताकै सर्वज्ञपणांका अभाव सिद्ध ही है अर रागादि दोषकरि दूषित नांही होय तौ हेतु विरुद्ध है, वीतराग विज्ञान आदि गुणनिकरि युक्त