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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला !
पणां आवै है ? ताकू कहिये-जो यह कहना अयुक्त है जातैं इहां देखना प्रत्यक्ष है भिन्न विषयपणांका अभाव है तातै प्रतीत्यन्तर नाही, देखने” प्रतीति भई है सो ही प्रत्यक्ष है ऐसैं नाही जो पहिले अनुमान प्रतीति भई तिसरौं प्रत्यक्षकी प्रतीति भई । इहां अग्नि वस्तु है ताकू अनेक प्रमाण करि अपने अपने विषयसारू जाननेमैं दोष नाही जातें विसदृश सामग्री करि उपजै जो भिन्न विषयवि प्रतीति सो प्रतीत्यंतर कहिये है तातें पहले अनुमानकी प्रतीति भई सो अपने विषयविर्षे भई अर प्रत्यक्ष प्रतीति भई सो अपने विषयवि भई इनिकै परस्पर कार्यकारणभाव नाही है । बहुरि विशदपणां केवल एतावन्मात्र ही नाही है यामैं विशेषनिसहितपणां करि भी प्रतिभासनां है। वस्तुका आकार वर्ण रस गंध स्पर्श आदिके जे विशेष तिनिकरि वस्तुका सर्वस्व देखनां सो वैशद्य है ॥ ४ ॥
आगैं सो प्रत्यक्ष दोय प्रकार है एक मुख्य प्रत्यक्ष, दूजा सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, सो आचार्य दोऊनिकू मनमैं धारि पहले सांव्यवहारिक प्रत्यक्षकी उत्पत्ति करनेवाली सामग्री अर तिसके भेदनिका सूत्र कहैं
इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं देशतः सांव्यवहारिकं ॥५॥ __याका अर्थ--इन्द्रिय अर मन है कारण जाकू ऐसा जो एकदेश विशद ज्ञान सो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है । इहां विशद अर ज्ञानकी अनुवृत्ति लणीं । यातें देश विशद ज्ञान होय सो सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष प्रमाण है ऐसा अर्थ भया। तहां 'सं' कहिये समीचीन-भला प्रवृत्तिनिवृत्तिरूप जो व्यवहार सो संव्यवहार है तिसविर्षे होय सो सांव्यवहारिक कहिये । बहुरि कैसा है ? इन्द्रिय कहिये नेत्र आदिक अर अ
हि. प्र. ४