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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला !
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हेतु किया सो यह हेतु असिद्ध है । ताका समाधान आचार्य कहै है; - जो प्रतिज्ञा कहो है अर तिसका एकदेश कहा है तब वह कहै जो धर्मका अर धर्मीका समुदाय सो प्रतिज्ञा है ताका एकदेश धर्मी अथवा धर्म है सो तिस सूं एक कह्या सो ही प्रतिज्ञाका एकदेश है ऐसा धर्मी हेतु असिद्ध है, ताका समाधान- जो धर्मीकै हेतुपणां कहते असिद्धपणांका अयोग है जातैं तिस धर्मीकै पक्षके प्रयोगकालविषै जैसें असिद्धपणां नांही है तैसैं ही हेतुके प्रयोगविषै भी असिद्धपणां नांही है धर्मी प्रसिद्ध ही कया है । बहुरि वह कहै है जो धर्मीकूं हेतु कहते अनन्वयनामा दोष आवै है जातैं धर्मी साध्यतैं अन्वयस्वरूप नांही । ताका समाधान-जो ऐसैं नांही है इहां प्रत्यक्ष विशेष तौ धर्मी है अर प्रत्यक्ष सामान्य है सो हेतु किया है सो सामान्य है सो विशेषविषै अन्वयरूप है ही जातैं सामान्य है सो विशेष विना नांही होय है । बहुरि कहै जो साध्य जो धर्मी ताकै हेतुपणां होतैं प्रतिज्ञाका एकदेशस्वरूप असिद्ध हेतु होय है कि नांही ? ताकूं कहिये – जो ताकै प्रतिज्ञाका एक देशपणा असिद्धपणां नांही है साध्यकै तौ स्वरूप ही करि असिद्धपणां है । जो प्रतिज्ञाका एक देशपणां करि असिद्धपणां कहिये तौ धर्मी भी प्रतिज्ञाका एकदेश है ताकरि व्यभिचार होय है । बहुरि है जो इहां धर्मीकूं हेतु किया अर व्यतिरेकव्याप्तिरूप व्यतिरेक ही दृष्टान्त कह्या सो सपक्षविषै याकी वृत्ति नांही तातैं अनन्वय दोष आया, ताका समाधान — जो यह भी असत्य है जातैं बौद्धमती सर्व वस्तुकै क्षणभंगका संगम है सो ही स्वरूप है ऐसैं मानें है तहां सत्वकूं हेतु करै है कि जो जो सत् है सो सर्व क्षणभंग है सो ऐसा सत्वनामा हेतुकै सपक्ष नांही जातें सर्व ही पक्षमैं आय गये, सो ऐसे हेतु भी अनन्वयदोषरूप
१ क्या ।
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