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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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व्याप्ति तौ ताका विषय न ठहरैगा । बहुरि कहैगा जो प्रत्यक्षकरि नाही ग्रह्या विषयकू थापै है तौ यामैं भी दोय पक्ष है;-प्रत्यक्षकै पी3 भया विकल्प ज्ञान है सो प्रमाण है कि अप्रमाण है ? जो कहैगा प्रमाण है तौ प्रत्यक्ष अनुमान सिवाय तीसरा प्रमाण आया जातै दोऊ प्रमाणमैं याका अन्तर्भाव नाही होय है। बहुरि कहैगा अप्रमाण है तौ तिसरौं अनुमानकी व्यवस्था न ठहरैगी जारौं व्याप्तिके ज्ञानकू अप्रमाण मानें तिसपूर्वक अनुमान भी प्रमाण न ठहरैगा जातै सन्दिग्ध आदि जो लिंग तारौं उपज्या अनुमानकै प्रमाणताका प्रसंग आवैगा। तातै व्याप्तिका ज्ञान जो तर्क सो विचारसहित विसंवादरहित प्रमाण प्रत्यक्ष अनुमान दोय प्रमाणते न्यारा ही माननां योग्य है । यारौं बौद्धकरि मान्यां जो प्रमाणकै दोयकी संख्याका नियम सो नांही है । ___ याही कथनकरि अनुपलंभ कहिये जाका सद्भाव ग्रहण नाही तिसरौं बहुरि कारणका अर व्यापकका अनुपलभतें कार्यकारणभाव अर व्याप्यव्यापकभावका ज्ञान होय है यह ही व्याप्तिका ज्ञान है ऐसा कहनां भी निराकरण किया, जातें अनुपलंभ तो प्रत्यक्षका विशेष है अर कारण आदिका अनुपलंभ है सो लिंग है सो लिंगकरि उपज्या अनुमान है है यातै प्रत्यक्ष अनुमानकरि व्याप्तिग्रहणमैं पहले दोष दिखाये ते ही जाननें। इस ही कथनकरि प्रत्यक्षका फल जो ऊहापोह-जो पहले तर्क उपजै जो यह कैसैं है पी3 ताका निराकरणकरै ऐसा विकल्पज्ञान ताकरि व्याप्तिका ज्ञान है ऐसा वैशेषिकमती माने है ताका भी निराकरण किया जातै प्रत्यक्षका फलफू प्रत्यक्ष अथवा अनुमान कहै तौ ते तौ व्याप्तिकू विषय करें नांही अर तिनि” अन्य कहै तौ न्यारा प्रमाण ठहरया ही । बहुरि कहै जो व्याप्तिका जाननेंरूप विकल्प तौ प्रमाण ठहरै नाही तो यह कहनां भी युक्त नाही जातै फल है तौऊ यातें