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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
अनुमान सिद्ध होय, बहुरि अनुमान सिद्ध भये पीछें व्याप्तिग्रहण होय ऐसे दौषतें दोऊकी सिद्धि नांही है । बहुरि कहै जो अन्य अनुमानतें अविनाभावस्वरूप व्याप्ति ग्रहण होय है तौ अनवस्थानामा दूषणरूपी वघे तिसपक्षकूं भखि जाय है जातैं अनुमान तौ व्याप्तिके ग्रहण विना होय नांही अरु व्याप्ति अन्य अनुमानकरि ग्रहण होय तौ तिस अनुमानकी व्याप्ति अन्य अनुमानकरि होय ऐसैं कहूं ठहरै नांही तब अनवस्था दूषण आवै । तातैं अनुमानका विषय व्याप्ति नांही सिद्ध होय है ।
बहुरि सांख्यमती आदिकरि कल्प्या जो आगम उपमान अर्थापत्ति अभावप्रमाण तिनिकर भी समस्तपणांकरि अविनाभावस्वरूप व्याप्तिका ग्रहण नांही है जातैं तिनि प्रमाणनिकै अपने अपने विषयका ग्राहकपणां है तातैं व्याप्ति तिनिका विषय नांही । बहुरि सांख्यमती आदि तिनि प्रमाणनिका व्याप्ति विषय मानैं भी नांही है । तहां आगमका विषय तौ वस्तुका संकेतकरि ग्रहण करना है । अर उपमानका विषय सादृश्यभाव है । अर्थापत्तिका विषय अर्थका अन्यथा न होनां है, एक वस्तुकी सामर्थ्यतैं अन्य अर्थ आय पड़े सो अर्थापत्ति है । बहुरि अभावका विषय अभाव ही है । इनिका विषय व्याप्ति नांही ।
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इहां बौद्धमती फेरि कहै है; - जो प्रत्यक्ष के पीछे विकल्प होय है- विचार होय है तातैं साध्यसाधनभावका ज्ञान समस्तपणांकरि होय है तातैं तिस व्याप्तिके ग्रहणकै अर्थि अन्य प्रमाण नांही हेरनां । ताका समाधान आचार्य करे हैं: -- जो यह कहनेवाला भी युक्तवादी नाही, जातें इहां ताकूं दोय पक्ष पूछिये – जो तिस विकल्पकै प्रत्यक्षकार ग्रहे विषयका व्यवस्थापकपनां है कि प्रत्यक्ष करि ग्रह्या नांही ऐसे विषयका व्यवस्थापकपनां है ? जो करूँगा प्रत्यक्षकरि ग्रहे विषयकूं ही थापै है तौ दर्शनस्वरूप प्रत्यक्षकी ज्यों ताकै पीछें भया निर्णयकै भी नियतविषयपणां ही ठहरया