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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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नाही । बहुरि इस प्रत्यभिज्ञानका विषय पूर्वोत्तर अवस्थाका एकपणां है ताका लोप कीजिये तो बंध मोक्ष आदिकी व्यवस्था बहुरि अनुमान प्रमाणकी व्यवस्था न ठहरै जातें एकत्व विना बंध्या सो ही छूट्या ऐसैं न ठहरै, तथा अनुमानका साधन जो लिंग ताका संबंधका ग्रहण एकत्वा विना कैसे होय, बहुरि या प्रत्यभिज्ञानका विषयविौं बाधक प्रमाण भी नांही है, जो बाधक होय तौ प्रमाणपणां न मानिये जातें प्रत्यक्षकै अर अनुमानकै तिस प्रत्याभज्ञानके विषयविर्षे प्रवृत्ति ही नाही बाधक कैसैं होय, अर प्रवृत्ति होय तौ तिसका साधक ही होय बाधक तौ न होय । तहां बहुत कहनेंकरि पूरी पड़ो, प्रत्यभिज्ञान प्रमाण न्यारा ही है।
बहुरि तैसैं ही बौद्धकी प्रमाणसंख्याका विरोधी बाधारहित तर्कनामा प्रमाण आवै ही है सों यह तर्कनामा प्रमाण प्रत्यक्षविर्षे अन्तर्भूत नाही होय है जाते साध्यक अर साधनकै जो व्याप्यव्यापकभाव है ताका समस्तपणां करि सर्वक्षेत्रकालका ग्रहण तर्कका विषय है, सो प्रत्यक्षका विषय नाही है, यह इन्द्रियप्रत्यक्ष है सो सर्वदेशकालसंबंधी जे व्यापार हैं तिनिकू करनेंकू समर्थ नाही जातें यह प्रत्यक्ष प्रमाण विचाररहित है अर इन्द्रियनिके समीपवर्ती पदार्थ याका विषय है । बहुरि तर्कके विषयकू अनुमान भी ग्रहण करनेंकू समर्थ नाही है जाते याका भी जिस देश आदिमैं तिष्टता पदार्थ है सो ही विषय है, व्याप्ति सर्व देशकालसंबंधी है सो अनुमानका विषय नाही । बहुरि जो व्याप्तिकू अनुमानका विषय मानें तौ तहां दोय पक्ष पूछिये,—जो व्याप्तिकू ग्रहण करै सो अनुमान तिस व्याप्तिसूं सिद्ध भया सो ही है कि अन्य अनुमान है ? जो कहैगा तिसव्याप्तिसूं सिद्ध भया सो ही है तौ तहां इतरेतराश्रयनामा दूषण आवैगा जातै पहले व्याप्तिग्रहण होय तब पी2