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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
अनुमान होय है सो अनुमान याका फल है ताका कारणपणांकी अपेक्षा याकै भी प्रमाणपणां युक्त है यामैं विरोध नाही जैसैं इन्द्रियकै अर अर्थक जुड़नेरूप सन्निकर्ष होय ताका फल जो विशेषणका ज्ञान ताके विशेष्यका ज्ञानस्वरूप जो फल ताकी अपेक्षाकरि प्रमाणपणां मानिये है तैसैं यह भी माननां । यातै वैशेषिककरि मान्यां जो ऊहापोह विकल्प ताहीकै प्रमाणान्तरपणां आवै है, प्रमाणपणाकू उलंघि नाही वत्र्ते है । ___ याही कथनकरि तीन च्यारि पांच छह प्रमाणकी संख्या कहनेवाले जे सांख्य अर अक्षपाद कहिये नैयायिक अर प्रभाकर जैमिनीय मीमांसक ते अपने अपने प्रमाणकी संख्याके थापनेंकू समर्थ नाही हैं ऐसे कह्या जो न्याय तिसकरि स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क इनि तीन प्रमाणनिकै तिनि सांख्यमती आदिनिकरि मानें प्रमाणकी संख्याका विपक्षपणां है, स्मृत्यादि तिनिके प्रमाणकी संख्याकू निराकरण करें हैं ॥२॥
आगें प्रथम प्रमाणका भेद जो प्रत्यक्ष ताके निरूपण करनेंकू सूत्र कहै है;
विशदं प्रत्यक्षम् ॥३॥ याका अर्थ-विशद कहिये स्पष्ट जो ज्ञान सो प्रत्यक्ष प्रमाण है । इहां ज्ञानकी तौ अनुवृत्ति करनी, अर प्रत्यक्ष है सो तौ धर्मी है अर विशद ज्ञानस्वरूप साध्य है अर प्रत्यक्षपणां हेतु करनां । सो ही प्रयोग कहिये है,—प्रत्यक्ष है सो विशद ज्ञानस्वरूप ही है जातें प्रत्यक्ष है, जो विशद ज्ञानस्वरूप नाही सो प्रत्यक्ष नाही जैसैं परोक्ष, इहां विवादमैं आया प्रत्यक्ष है तारौं विशद ज्ञानस्वरूप ही है, ऐसैं अनुमानके पांच अवयवरूप प्रयोग या सूत्रका है । इहां कोई कहै जो यह प्रत्यक्षपणां हेतु किया सो सूत्रमैं तो एक धर्मीहीका शब्द प्रत्यक्ष ऐसा था तिसहीकू हेतु किया सो पक्षका वचनरूप जो प्रतिज्ञा ताका अर्थका एकदशकू