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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला |
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तिसका निश्चय भया सो ऐसा ज्ञानकरि दूजे क्षण तैसा ही ज्ञान उपज्या सो तदाकार भी है तिसका निश्चयस्वरूप भी है अर पहले क्षणका पीताकारज्ञानकूं क्यों नांही जानै, यह ही व्यभिचार । ऐसें च्यारूं ही प्रकार यह व्यभिचार भया, तातैं क्षयोपशमलक्षणयोग्यता माननां श्रेष्ठ है । इस ही कथनकार जो बौद्धनैं ऐसें कह्या ताका श्लोक है ताका अर्थ — प्रत्यक्ष ज्ञान निर्विकल्प है ताहि अर्थ रूपता विना अन्य कोई अर्थ करि नांही रचै, अर्धरूपता ही प्रत्यक्षरूप निर्विकल्प ज्ञानकूं अर्थकरि जोडै है तातैं प्रमेयका जाननां प्रमाणका फल है प्रमेयरूप होनां सो ही ताका प्रमाण है, ऐसैं कहनां निराकरण किया जातै समान अर्थ आकार भये जे अनेक ज्ञान तिनिविषै प्रमेयरूप होनेंका सद्भाव है । बहुरि बौद्धमती यहु सारूप्य माने है सो समानपरिणामरूप समान्य ही सारूप्य है सो सामान्यकूं वस्तुभूत नांही मानैं हैं सो अवस्तुभूत होय सो काहेका सारूप्य ? तातैं यह ही ठहरे है जो क्षयोपशमलक्षण योग्यता है सो ही विषय प्रति नियमका कारण है ॥ ९ ॥
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आगैं कोई ऐसा मानैं है— जो अर्थ है सो ज्ञानका कारण है याही अर्थ ज्ञेयरूप कहिये है ऐसा मतकूं निराकरण करै है ताका सूत्र :कारणस्य च परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः १० ॥
याका अर्थ — जो कारणकै परिच्छेद्यत्व कहिये ज्ञेयपणां मानिये तौ नेत्रादि करण हैं तिनिकरि व्यभिचार होय है, ते कारण तौ हैं अर परिच्छेद्य नांही हैं आपकूं आप नहीं जाने है । इहां वह कहै जो हम कारणपणात परिच्छेद्यपणां नांही कहैं हैं परिच्छेद्यपणांतें कारणपणां कहैं
१ एतेन यदुक्तं -
अर्थेन घटत्येनां न हि मुक्त्वार्थरूपताम् । तस्मात्प्रमेयाधिगतेः प्रमाणं मेयरूपता ॥ १ ॥