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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
नवीन घटविय लागे तैसें तिस
सुंदर सत्पुरुष
नवीन घटविषै किळू घालिये सोहू शीतल होय पीवञवाले पुरुषनिके चित्त• प्रिय लागै तैसैं तिस प्रभाचंद्रके वचनही अपूर्व रचना कहिये तिनिकू नई रचनारूप किये संते सुंदर सत्पुरुषनिके चित्त• हरनहारे होयंगे। आरौं यह टीका जिस निमित्त बणी है सो संबंध कहै हैं;
वैजेयप्रियपुत्रस्य हीरपस्योपरोधतः ।
शांतिषणार्थमारब्धा परीक्षामुखपचिका ॥५॥ याका अर्थ-वैजेयका प्यारा पुत्र जो हीरपनामा ताकी प्रार्थनात शांतिषेणनामा कोई शिष्य हैं ताके पढ़नेके अर्थ यह परीक्षामुखनामा ग्रंथकी पंचिका आरंभी है।
इहां “परीक्षामुख" ऐसा नामका अर्थ ऐसा, जो परीक्षानाम विचारका है जो वस्तु ऐसे है कि नाही है कि अन्यप्रकार है ऐसा विचारकू कहिए सो इहां प्रमाणका लक्षण आदिकी परीक्षा करिये हैं इस द्वारतें सर्वही वस्तुकी परीक्षा होय है तातै परीक्षामुख है । बहुरि ताकी टीकाकू पंचिका कही सो सूत्रनिके पद न्यारे करि तिनिका न्यारा न्यारा अर्थ कहिये ताकू पंचिका कहिए है, सो इस टीकामैं सूत्रनिका भिन्न भिन्न पदनिका अर्थ करियेगा तातै पंचिका नाम है । याका दूजा नाम प्रमेयरत्नमालाभी है।
आरौं मूलग्रंथका आदि सूत्रकी सूचनिका कहै है;
श्रीमत् कहिये पूर्वापरविरोधरहितपणां सो ही जो श्री लक्ष्मी ताकरि सहित ऐसा जो न्याय सो ही भया समुद्र जामैं अगणित प्रमेय वस्तुरूप रत्न भरे सो ही है सार जामैं ऐसा न्यायरूप समुद्र ताके अवगाहन करनेकू अव्युत्पन्न जे न्यायशास्त्रके अभ्यासरहित पुरुष ते असमर्थ हैं, ऐसा विचारि श्रीमाणिक्यनन्दिनाम आचार्य तिनिके अवगाहनेंकू जिहा