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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
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है ।" ऐसैं अनुमानके पंच अवयवरूप यह सूत्र है । धर्मी अर साध्य दोऊ स्वरूप पक्ष कहिये ताका वचन सो प्रतिज्ञा है, साधनका वचन सो हेतु है, व्याप्तिकूं लार लगाय दृष्टांतका वचन सो उदाहरण है, दृष्टांतकूं अरु पक्षं समान कहनां हेतुको संकोचनां सो उपनय, साध्यका नियम कहनां सो निगमन, ऐसैं इनि पांचनिका स्वरूप आगैं सूत्रकार कहसी । ऐसैं सूत्र है सो प्रमाणभूत है आप्तका यह वचन है तातें तौ आगमप्रमाणरूप हो है, बहुरि अनुमानके अवयवरूप हो है । बहुरि सूत्रका ऐसा भी स्वरूप कह्या है; - जामैं अक्षर अल्प होय, बहुरि जामैं संदेह न उपजै, बहुरि सारर ( स ) हित होय निःसार नाही होय, बहुरि जामैं निर्णय गूढ होय, अर्थ गंभीर होय, बहुरि शब्द अर्थ जामैं निर्दोष होय, बहुरि हेतुसहित होय, बहुरि सत्यार्थ होय ऐसा होय सो सूत्र है, सो इस प्रकर
के सर्वसूत्रनिका ऐसा स्वरूप जाननां । इहां प्रमाणकूंही हेतु कह्या सो असिद्ध नांही है जातैं सर्वही प्रमाणका स्वरूप कहनेवालेनिकै प्रमाणसामान्यविषै विप्रतिपत्तिका अभाव है, प्रमाणसामान्य प्रसिद्ध है जो ऐसैं नांही मानिये तो अपना इष्टतत्वकं साधनां परका इष्टतत्वकं दूषण देनां न होय. प्रमाण विनां काहे साधै का दूषै ।
इहां तर्क; - जो धर्मीहीकूं हेतु कहे प्रतिज्ञाका एकदेश भया सो असिद्धनामा हेत्वाभास भया ।
ताका समाधान; -- जो ऐसैं नांही, प्रमाणका विशेषकं धर्मीकरि अरु प्रमाण सामान्यकूं हेतु कहैं तिनिकै दोष नाही आवै है इसही वचनतैं या हेतुकं अपक्षधर्म कहै सो भी नांही है जातैं सामान्य है सो समस्त विशेषनिमैं ब्यापक होय है सो पक्षका धर्मही है । बहुरि हेतुकै पक्षका धर्मपणांका बलकार साध्य प्रति गमकपणां नही है साध्य विनां न होना इस बलतैं ही साध्य प्रति गमकपणां हैं तो यह साध्यान्यथानुपपत्ति कहिये,.