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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
उपलब्धि नाही-मोकू दखै नांहीं तातै अभाव मानूं हूं तौ अनुपलब्धिनामा लिंगकरि उपज्या अनुमान एक और आया, निषेध तौ न भया ।
बहुरि प्रत्यक्षका प्रमाणपणां भी स्वभावहेतु” उपजी जो अनुमिति जाकू अनुमान भी कहिये तिस विना न बगैंगा सो यह पहले कह आये हैं यातें अब काहेर्दू कहैं । इस अनुमानका समर्थन बौद्धमतका आचार्य धर्मकीर्ति किया है, ताका श्लोक है ताका अर्थ;—प्रत्यक्ष प्रमाण सिवाय अन्य प्रमाणका सद्भाव तीन हेतु” होय है,—प्रथम तौ प्रमाण अर अप्रमाण सामान्यका ठहरनां प्रत्यक्ष सिवाय अन्य प्रमाण विना होय नाहीं प्रत्यक्षमैं विपर्यय ही ग्रहण भया होय ताका निषेधकू अन्य प्रमाण चाहिये । दूसरै अन्यकी बुद्धिका जाणपणां प्रत्यक्षतें नाहीं तातें अन्य प्रमाण चाहिये जाकरि अन्यकी बुद्धिका ज्ञान होय, सो वचन आदि कार्यनितें अनुमान होय है। तीसरा परलोक आदि अदृष्ट वस्तुका निषेध करनेंकू अन्य प्रमाण चाहिये । ऐसें सौगत जो बौद्धमती है सो चार्वाक एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानैं ताकै दूजा अनुमान प्रमाणका सद्भाव दिखाय अर आपका स्थापनेंकू अनुमानका समर्थन करि कहै है, जो प्रत्यक्ष अर अनुमान ये दोय प्रमाण हैं।
तहां आचार्य कहैं हैं;-ऐसैं दोय प्रमाण मानता जो बौद्ध सो भी युक्तवादी नांही है जातें स्मृतिनामा प्रमाण विसंवादरहित निर्बाध है ताका सद्भाव है । याकू विसंवादरहित कह करि प्रमाण न मानिये तौ देमें लेने आदिका व्यवहारका लोपकी प्राप्ति आवै है, पहले काहूकौं धन सौंप्या पीछै ताकू यादि करै मांगे। बहुरि जाकू सौंप्या ताकू यादि १ यदप्युक्तं धर्मकीर्तिना;प्रमाणेतरसामान्यस्थितेरन्यधियो गतः। प्रमाणान्तरसद्भावः प्रतिषेधाच्च कस्यचित् ॥ इति