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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला !
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प्रमाणकी प्रमाणता अन्यतैं होय तब तिस अन्यकी प्रमाणता काहेतैं होय ? बहुरि तिसकी भी अन्यतैं कहिये तौ कहूं ठहरनां नांही तब अनवस्था भई | ऐसैं दोऊ आशंकाका निराकरणकार अपना मत स्थापते संते सूत्र कहैं हैं । इहां ऐसा भावार्थ — जो मीमांसकमती तौ प्रमाणका प्रमाणपणां स्वतः कहैं हैं अप्रमाणपणां परत: कहैं हैं । बहुरि सांख्यमती प्रमाणपणां तौ परतः अप्रमाणपणां स्वतः कहैं हैं । बहुरि नैयायिकमती दोऊ ही परतः होय है ऐसें कहैं हैं । ऐसें बहुत वादीनिकरि अन्य I अन्य प्रकार कहनेंतैं संशय उपजै है ता कथंचित् स्वतः कथंचित् परत: ऐसैं स्याद्वाद यथार्थसिद्धि होय है ऐसैं सूत्र कहैं हैं;
तत्प्रामाण्यं स्वतः परतश्च ॥ १३ ॥
याका अर्थ — तिस प्रमाणका प्रामाण्य कहिये प्रमाणपणां कथंचित् आपहीतैं होय है कथंचित् परतैं होय है । तहां सूत्रनिके संप्रदाय मैं ऐसी परिभाषा है— जो वाक्य कहिये सूत्र हैं ते सोपस्कार कहिये अन्यपदनिका अध्याहार — मेलनां सहित होय हैं, सो इहां ऐसी प्राप्ति करणीं, जो अभ्यासदशा विषै तौ प्रमाणका प्रमाणपणां आपहीतैं होय है, बहुरि अनभ्यासदशा विषै परतें होय है । ऐसैं कहनेंतैं दौऊ एकान्तका निराकरण भया । इहां कथंचित् अनभ्यास दशा विषै परतैं प्रमाणपणां कहनें मैं अनवस्था जैसैं एकान्त कहनें मैं आवै है तैसें समान नही आ है जातैं अभ्यस्तविषयस्वरूप जो अन्यज्ञान ताकरि आप ही तैं प्रमाणपणां होय है ताकरि अनवस्थाका परिहार होय है ऐसा अंगी - कार हम किया है । अथवा प्रमाणका प्रमाणपणां उत्पत्तिविर्षै तौ परतें ही हो है जातै विशिष्ट नवीन कार्यका होनां विशिष्ट नवीन कार - तैं ही होय है । बहुरि विषयका जाननेंरूप तथा विषयविषै प्रवर्त्तनें-रूप जो प्रमाणका कार्य ता विषै अभ्यासदशा मैं तौ आपहीतैं प्रमाणता