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( ण. ) ३४ राग-द्वेष-विनय १२७ | पंचम अध्याय-ज्ञान प्रकरण अध्याय तृतीय-धर्म स्वरूप वर्णन । १ पांच ज्ञान
१८७
२ ज्ञानों के क्रम की उत्पत्ति १८८ १ मानव जीवन
३ मतिज्ञान श्रुतज्ञान का अन्तर २ अाठ परिवर्तन
४ उपयोग का क्रमविकास १६० ३ त्रस पर्याय की दुर्लभता ।
५ अवग्रह के भेद
१६१ ४ यथा कर्म तथा फल
६ चनु-मन अप्राप्यकारी हैं ५ मनुष्य की दस दशाएँ
७ इन्द्रियों की विषयग्रहण शक्ति ६ जीवन की भंगुरता
साश्रुतझान के दो भेद .७ धर्म श्रुति की दुलभता
६ श्रुतशान के चौदह भेद ८धर्म उत्कृष्ट मंगल है .
१० अवधि शान के भेद १६५ ६ अहिंसा धर्म
१४४ ११ मनःपर्याय ज्ञान
१६६ १० संयम और तप
१२ केवल ज्ञानः .
१६८ ११ धर्म का मूल-विनय १५१ १३ ज्ञान का विषय-शेय
१६६ १२ विनय के सात भेद
१४ शून्यवादी का पूर्वपक्ष और खंडन २०० १३ धर्म का पात्र -
१५ शान स्वसंवेदी है . २०१ १४ धर्म के लिए प्रेरणा १५६ १६ ज्ञान की महिमा
२०२ १५ निष्फल और सफल जीवन
१७ ज्ञान प्राप्ति का उपाय
२०४ १६ धर्म की स्थिरता
१८ श्रीता के गुण
२०४ १७ धर्म ही शरण है
१५६
१६ श्रुत शान की उपयोगिता २०६ १८ धर्म की ध्रुवता
१६० २० अविद्या का फल
२०८
२०८
२१ ज्ञान और क्रिया चतुर्थ अध्याय-श्रात्म शुद्धि के उपाय
२२ क्रिया की आवश्यकता २१० १ नरक-तिर्यंच गति के के दुःख १६२ २३ एकान्त ज्ञानवादी का समाधान २१३ २ मनुष्य-देव गति के दुःख १६३ २४ ज्ञानेकान्त का विषय फल २१५ ३ संसार की विचिन्नता
२५ सञ्चा ज्ञानी
२१८ ४ बत्तीस योग संग्रह
२६ समभाव
२२० ५ तीर्थकर गोत्र के बीस कारण १७० ।
छठा अध्याय-सम्यक्त्वनिरूपण ६ अशुद्धि के कारण
१७३ ७ अकाल मृत्यु १७४ १ सम्यग्दर्शन
- २२४ ८ अधोगति-उच्चगति
१७७ २ देव, गुरु, धर्म का स्वरूप २२४ ६ यत्तापूर्वक प्रवृत्ति १७८ ३ सम्यक्त्व प्राप्ति
२२५ १० देवलोक गमन
१७६ ४ सम्यक्त्व की आवश्यकता २२७. ११ आध्यात्मिक अग्निहोत्र
५ सम्यक्त्व की स्थिरता के उपाय २२८ १२ आध्यात्मिक स्नान
६ कालवादी
२३१
१५७
. १५८
१८३ ६काल