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श्रेणीक ने परमात्मा से कहा आप ने इनको दीक्षा के समय कौनसी आज्ञा दी थी? जो इनके लिए शुभ में निमित बनी। भगवान ने कहा, राजन ! साधना का सर्वोच्च परिणाम अदीनभाव में रहकर आत्मा को अनुशसित करना है। अनुशासन का मुख्य सूत्र हैं -
एगोऽहं णत्थि मे कोइ, नाहमन्नसकस्सइ।
एवमदीणमणसा अप्पाणमणुसासइ॥ केवलमात्र इस आत्मानुशासन की आज्ञा का लोप करनेपर इनकी आत्मदशा में हीनभाव आये थे परंतु पुनश्च आत्मदशा में अनुशासन आनेपर शुद्ध, विशुद्ध, अतिशुद्ध भावों की उच्च दशा में ये केवली बन गए। आनंदघन जी महाराज दिन रात परमात्मा के साथ गुजारते थे। एक ही चद्दर रखते थे। दूसरी चद्दर नहीं रखते। सोचा चलो गडबड हुई तो क्या हुआ? आखीर है तो ज्ञानी संत भक्तिवाले हैं अपने को वो अच्छा चेजिदत हाकाइ बात नहीं गलती हुई हम उस को सुधार लेते है वो पहुँचे भीतर कमरे में। आनंदधन महाराज जी की चद्दर पडी थी लेकिन वह चद्दर कॉप रही थी अरे ये तो कोई ओर मामला है वो डर कर के चीख देता है। इधर इनकी चद्दर में चले गए दुसरी चद्दर तो थी नहीं, लोग पागल कहंग या नहा। प्रवचन देनचेदर मानहा पहनत एक प्राचंदन सोचा चलो गडबड हुई तो क्या हुआ? आखीर है तो ज्ञानी संत भक्तिवाले है अपने को वो अच्छी चीजे देते है। कोई बात नहीं गलती हुई हम उस को सुधार लेते है वो पहुँचे भीतर कमरे में। आनंदधन महाराज जी की चद्दर पडी थी लेकिन वह चद्दर कॉप रही थी अरे ये तो कोई ओर मामला है वो डर कर के चीख देता है। इधर इनकी चद्दर में भूत आया हुआ है। चद्दर कॉप रही है। सारे लोग चीख सुनकर उधर चले गये जहाँ चद्दर पडी हुई थी। आनंदधन जी महाराज इतने अद्भूत थे कि लोग अंदर शोर मचा रहे थे इधर इनका प्रवचन चालू था। ऐसे संत नहीं देखने को मिलते। जब प्रवचन देते तो देते ही रहते उनको लोग पागल ही तो कहेंगे। एक दिन किसी श्रावक ने उनसे पूछा कभी मागगॅए ताफोप छैनफा तोगपशपलो.बलाते है तो आप आते नहीं और कभी पाँच पंद्रह लोग आए तो भी आप आनंदघन महाराज के भीतर भगवान बिराजमान है । इनकी भगवत्सत्ता प्रगट हो चुकी है । इनकी वाणी अद्भुत है । इनकी वाणी से प्रकाशित सत् को झेल लेना चाहिए ऐसा अवसर पुनः नहीं मिल सकता । हाथ जोड कर वे वाणी को पी रहे थे । जैसे प्रवचन समाप्त हआ लोगो ने यशोविजय जी म.सा. से कहा शोर मच गया किन्तु आप भी बैठे भाग गए लेकिन वे उनके समक्ष हाथ जोडकर खडे थे क्योंकि वे उन्हे पहचाने गए थे। उन्होंने निर्णय किया था कि आनंदघन महाराज के भीतर भगवान बिराजमान है । इनकी भगवत्सत्ता प्रगट हो चुकी है । इनकी वाणी अद्भुत है ।इनकी वाणी से प्रकाशित सत् को झेल लेना चाहिए ऐसा अवसर पुन: नहीं मिल सकता । हाथ जोड कर वे वाणी को पी रहे थे । जैसे प्रवचन समाप्त हुआ लोगो ने यशोविजय जी म.सा. से कहा शोर मच गया किन्तु आप भी बैठे थेऔर आप के गुरु जी भी बैठे थे । बोले भीतर जाकर तो देखो चद्दर कैसे कॉपरही है। चद्दर देखकर यशोविजय जी महाराज समझ गए कि महाराज जी को बुखार था और बुखार के परमाणु इन्होंने चद्दर में भर कर रखे है। उसके बाद उन्होंने सब को कहा चुप रहो। महाराज बडे स्वस्थ लगते थे। पाटे पर से उतरे भीतर गए चद्दर ओढी जैसे च
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