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नमोत्थुणं पुरिससीहाणं
निर्भीकता जिनका स्वभाव हैं वे पुरिससीहाणं हैं। शूरवीरता जिनकी स्वाभाविकता हैं वे पुरिससीहाणं हैं।
जिनका वर्चस्व संपूर्ण विश्वपर हैं वे पुरिससीहाणं हैं। उपमा के दो प्रकार हैं - पूर्णोपमा और लुप्तोपमा। उपमा के मुख्य चार गुणधर्म हैं - समानधर्म, उपमेय, उपमान और उपमावाचक। इन चारों के द्वारा प्रस्तुत पद को हम परमपुरुष के साथ जोडकर देखेंगे। परमपुरुष में रहा हुआ सिंहत्त्व हमारे कर्मक्षय में कैसे सहायभूत हो सकता है वह इस पद के द्वारा समझाया जाता है।
१.समानधर्म :- पुरुष और सिंह, २. उपमेय :- सिंह के सामने सिंह, ३. उपमान :- सिंह के सामने हरिणी, ४. उपमावाचक :- सिंह का सिंहत्त्व।
प्रस्तुत चारों गुण जहाँ होते हैं वहा पूर्णोपमा हैं और जहाँ चारों गुणों में से एकाद गुण भी कम हो तो उसे लुप्तोपमा कहते हैं। आज नमोत्थुणं के द्वारा परमात्मा की पहचान पाने आगे बढते है तब उपमाओं के सारे आवरण टूट जाते हैं और अनुपम परमात्मा को पहचानने में उपमान अनावश्यक हो जाते हैं। फिर भी छद्मस्थोंको समझाने के लिए ज्ञानी पुरुषों ने इस पद से उपमानों का उपयोग शुरु किया हैं। यहाँ पर प्रस्तुत दोनों उपमाओं में यह पद लुप्तोपमा वाला कहलाता हैं, पूर्णोपमावाला नहीं। क्योंकि हमें भगवान का स्वरुप समझाने के लिए सिंह की उपमा दी जाती हैं परंतु सिंह को समझाने के लिए भगवान की उपमा नहीं दी जाती। यह हैं लुप्तोपमा। पूर्णोपमा में दोनों आपस में एक दूसरे की उपमा में फीट बैठते हैं।
सिंह के जिस उपमान को यहाँ पर उपयोग में लिया गया उसमें दो प्रकार की विशेषताएं पायी जाती हैं। जैसे सिंह में शूरवीरता भी है और क्रूरता भी है। यहाँ उपमानों का उपयोग केवल गुणों के आधारपर किया गया है। यहाँ परमात्मा में निहित सिंहत्त्व के अनुभव के लिए दस लक्षणों का उपयोग किया जाता हैं - शूरवीरता, क्रूरता, असहिष्णुता, वीर्यवान, वीर, अवज्ञावाले, निर्भय, निश्चिंत, अखिन्न और निष्कंप।
१.शूरवीरता :- संपूर्ण जंगल में अन्य प्राणियों के साथ रहा हुआ सिंह राजा कहलाता है। कोई उसका राज्याभिषेक नहीं करता है परंतु उसकी शूरवीरता ही उसे वन के साम्राज्य का स्वामी बनाती है। जो निर्भीक होकर सामना कर सकता है उसे शूरवीर कहते है। शूरवीरता अर्थात् बिना घबराए सामना करना। मोक्ष मार्ग में निर्भीक होकर कर्मोंका सामना करना होता हैं। इसके लिए आनेवाले परीषहों का और उपसर्गोंका जमकर मुकाबला करना होता हैं। तीर्थंकर परमात्मा शूरवीरता के इस सद्गुण के कारण संपूर्ण विश्व के स्वामी है। शूरवीरता के इस गुण के कारण परमात्मा विश्व के अखंड साम्राज्य के स्वामी है।
२.क्रूरता:- जो शूर होता है स्वाभाविक ही वह क्रूर होता है। शत्रुओं का उच्छेद करने में सिंह क्रूर होता है। तीर्थंकर परमात्मा कर्मोंका उच्छेद करने में क्रूर अर्थात् कठोर होते है। भगवान महावीर की जीवनचर्या परमात्मा