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गुरु की आज्ञा !
गुरु की आज्ञा क्या होती हैं ?
प्रभु के दिए हुए नियमों का पालन करने की !
जाओ ! तुम्हारे संथारे (साधु के शयन का आसन ) में बिराजकर चिंतन करो कि आज्ञा और देशना में अधिक महत्तवपूर्ण क्या होता हैं ?
ऐसा होमवर्क देकर गुरणी स्वयं के आसनपर पधारती हैं। साध्वी मृगावतीजी भी स्वयं के आसनपर बैठकर सोचती हैं - मैंने आज ऐसा क्यों किया ? प्रभु की देशना सुनने के लिए प्रभु के ही नियमों का उल्लंघन किया?
नियम के नियंता भगवान हैं तो नियम के दाता गुरु हैं।
नियम बनाते हैं वे भगवान हैं।
नियम देते हैं वे गुरु हैं।
नियम का स्वीकार करते हैं वे शिष्य हैं।
कलयुग की साध्वी होती तो सोचती, विलंब हो गया तो क्या हुआ ? मैं थी तो भगवान के समवसरण में ही फिर इतना उपालंभ देने की क्या आवश्यकता थी। परंतु ये तो थे सत् पुरुष। सत्पुरुषों के मन के अंदर जब कभी भी सत्वचन या सत्बात प्रगट हो जाती हैं तब वह सत् प्रगट किए बिना रहती नहीं । साध्वी मृगावती के अंत:करण में यह सत् ब्रह्मवचन प्रगट हो गया।
लगाया आसन। याद आ गया शासन | फरियाद हो गयी अनुशासन की याद आ गई देशना की। फरियाद थी आज्ञा भंग की। याद और फरियाद के बीच में भीतर कई दृश्य दिखने लगे - शासना-देशनाअनुशासना-वाचना-आज्ञा उल्लंघना... भीतर में प्रगट हुआ परमात्मा का समवसरण - समवसरण में सिंहासन-सिंहासन से जुडा चरणासन-चरणासनपर प्रभु के चरण- चरणों के दर्शन करते हुए मृगावती जी कहते हैं - हे लोगपज्जोयगराणं ! ये सूर्य-चंद्र आदि के प्रकाश हमारे जैसे छदमस्थ जीवों को भ्रम में डाल सकते हैं। प्रभु ! तेरा स्वरुप तेरा उद्योत हमें सर्वथा भ्रम से मुक्त करता हैं। भव भवांतरों की भ्रम का भंग करनेवाले हे लोगपज्जोयगराणं ! पधारो मेरे भीतर। परम उद्योत करो । पुन: कभी भी आज्ञा उल्लंघन 'गलती नहीं होगी। नमोत्थुणं लोगपज्जोयगराणं के जाप चालु हो गए। पाप-पश्चाताप - जाप - तीनों एक साथ होने लगे। जगत् में पाप तो अनेक लोग करते हैं परंतु पाप का पाप के रुप में स्वीकार नहीं करते हैं। जब पाप का बोध होता है तब भी ठीक है हो गया अब ध्यान रखेंगे। परंतु पश्चाताप नहीं होता। जब प्रभु के जाप और पाप का पश्चाताप एक साथ होते हैं तब कर्मक्षय होते हैं। अकेला पश्चाताप इसतरह होता हैं कि यदि ऐसा पता होता तो मैं ऐसा नहीं करता । सूर्य चंद्र के आ की खबर होती तो मैं समवसरण में जाती ही नहीं। तो लेट होने की गलती होती ही नहीं आदि आदि ।
लौकिक नुकसान के पश्चाताप होते रहते हैं परंतु आत्म बोध के अनुरुप पश्चाताप होता है तब परमात्मा पधारते हैं। परमात्मा और पश्चाताप एक साथ पधारते हैं। पश्चाताप रहित पाप और जागृति रहित जाप दोनों अधूरे हैं। इसलिए पाप और पश्चाताप समझने अत्यंत आवश्यक हैं। मृगावती पाप का पश्चाताप करके
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