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नमोत्थुणं मुत्ताणं मोयगाणं
जन्म मरण और देह से मुक्त होकर जिन्होंने मुक्ति प्राप्त कर ली वे मुत्ताणं मोयगाणं हैं। जन्म मरण और देह से मुक्त कर जो हममें मुक्ति प्राप्त कराने का सामर्थ्य प्रगट करते हैं वे
मोयगाणं हैं। मुत्ताणं मोयगाणं में हमारा अस्तित्त्व मुक्तत्त्व का अनुभव करता है।
मुत्ताणं मोयगाणं में हमारा जीवत्त्व तत्त्वमय हो जाता है।
आज की भाषा में मुत्ताणं मोयगाणं को समझना हो तो यहीं कहना होगा कि जो पर्सनल है, परफेक्ट है और परमनेंट हैं वे मुत्ताणं मोयगाणं हैं। बोध, बोधि और समाधि से समस्त पाप कर्म और दुःखों का अंत हो जाता है। कृत्स्न कर्म क्षयोमोक्षः किये हुए कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है। मोक्ष किसी नई धारणा का उत्पन्न होना नहीं है। अप्रगट का प्रगट हो जाना मोक्ष है। बीज में वृक्ष है, मिट्टी में घडा है परंतु अप्रगट हैं उसे प्रगट करना होता है। भाव के दो प्रकार है - तिरोभाव और आविर्भाव। जैसे ६४पहरी पिपर राई के दाने जितनी लो तो भी सर्दी मिट जाती हैं क्योंकि उसे ६४ पहर तक घोटी गयी है। उसका ऐसा नियम होता है कि वह घोटते समय निरंतर घोटी जानी चाहिए। बीच में बंद नहीं कर सकते । एक आदमी एक प्रहर तक घोट सकता है ऐसे ६४ घोटकों की व्यवस्था होती है। वस्तु पदार्थ वही होते हुए भी उसकी शक्ति और गुणधर्म में परिवर्तन और परावर्धन हो जाता है। जो जिसमें तीरोभुत होता है उसका उसी मेंसे आविर्भाव होता है। आवरण हटाकर, परदा हटाकर इसे स्पष्ट किया जाता है।
परमात्मा सदेह विचरते थे तब भी वे भीतर से मुक्त आत्मा थे। देह रहित मुक्त अवस्था प्राप्त कर लेनेपर वे पूर्णत: मुक्त आत्मा हो जाते है। स्वयं मुक्त होकर अन्य जीवों को भी मुक्त करने में वे समर्थ होते हैं। प्रश्न इस बात का है कि क्या हम वास्तव में मुक्त होना चाहते है? हम केवल रोगों से मुक्त होना चाहते हैं परंतु अरोगी या निरोगी नहीं हो सकते हैं। केवल दरिद्र या अकिंचन रहना नहीं चाहते परंतु अपार लक्ष्मी, वैभव और समृद्धि की भरमार चाहते हैं। हमारी चाहना पदार्थ और परमाणुओं की असीम है। ऐसी स्थिति में मुक्त होने की प्रभु से याचना या प्रार्थना करना व्यर्थ है। यहाँ मोयगाणं से प्रभु के मुक्त करने के सामर्थ्य की बात है। उपदान जबतक विशुद्ध न हो तब तक मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती।
___आज हम उपरोक्त विचारों से हटकर सोचते हैं। हम उनकी चर्चा करते हैं जो वास्तविक मोक्ष को चाहते हैं। मोक्षाभिलाषी हैं। मोक्ष का अधिकारी हैं। मोक्षमार्गपर चल रहा है, पर अभी मोक्ष हो नहीं सकता इस विवशता के कारण स्वयं की निर्मल दशा प्रगट करने में निर्बल हो रहे हो। यह बात तो सही है इस जन्म में यहाँ से मोक्ष नहीं हो सकता हैं परंतु इस काल में मोक्ष नहीं हो सकता ऐसी बात नही है। इसकाल में भरतक्षेत्र वासियों का पराक्रम, पुरुषार्थ और सामर्थ्य कम या कमजोर है। निर्मलता प्रगट करने के लिए यथा योग्य पुरुषार्थ न हो पाने से यहाँ से
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