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भय जब लगता हैं तब आँखें बंद होती हैं, कान फफडते हैं, नाक फूलता हैं, मुँह से लंबी लंबी साँसे निकलती है। सामने से गाडी आ रही हो तब घबराए हुए व्यक्ति की स्थिति आपने देखी होगी। आँखे बंद होती हैं, हाथ की मुठी बंद होती हैं, पाँव संकुचित हो जाती हैं, भगना मुश्किल हो जाता हैं, बचने की आशा नहीं रहती, फिर भी किसी कारण बच जानेपर परिस्थिति के बारे में पूछनेपर वह यही कहेगा कि कुछ पता नहीं कैसे फंसा और कैसे बचा। अनादिकाल से संसार यात्रा में अकस्मात में फसे हैं। कैसे फँसे हैं कैसे बचे हैं पता नहीं। परमात्मा हमें अभय देते हुए कहते है, वत्स ! तू अभय स्वरूप हैं। भय तेरा स्वभाव नहीं ,अभवा हैं। तू स्व में आ तेरा स्वभाव प्रगट कर और भय के अभाव का अनुभव कर।
सैध्धांतिक दृष्टि से जीतभय के दो हैं - सर्वथा जीतभय और तात्त्विक जीतभय। तत्त्वदृष्टि से भय को जीतना जीतभय हैं। यहाँ तत्त्व के दो प्रकार बताए हैं, जड और चेतन। दोनों एक दूसरे से अत्यंत भिन्न होते हुए भी अनादिकाल से साथ में होते हैं। विपरित होते हुए भी साथ रहना यह जगत का सबसे बडा आश्चर्य हैं। एक आश्चर्य और है साथ रहते हुए भी वे अंशिक रूप से भी एकरूपता नहीं पाते हैं। पर इन दोनों के संयोग में आनेपर बंधन होता हैं और बंधन में भय उत्पन्न होता हैं। यह दोनों भिन्न हैं ऐसा स्वीकार लेने पर भय की जीत होती हैं। भय भ्रम हैं ऐसा मान लेना तात्त्वीकजीतभय है। यहाँ सर्वथा जीतभय की अवस्थावाले परमात्मा को नमस्कार होते हैं।
इस पद में हमें प्रभु के समक्ष साक्षीभाव में प्रगट होना हैं। अधिकांश हम नमो शब्द बोलते ही अरिहंताणं शब्द से पहले ही गायब हो जाते हैं। हमारी यह अनुपस्थिति से हम अनजान और अबोध हैं। नमो बोलते ही परमात्मा का ध्यान हमारी ओर होता हैं। उनसे संपर्क करने से पूर्व ही हम अनुपस्थित हो जाते हैं। साक्षी भाव के दो प्रका हैं - प्रत्यक्ष साक्षात्कार और समक्ष साक्षात्कार। हमें परमात्मा के समक्ष जैसे हैं वैसे प्रगट होना हैं। न कोई भेद न कोई खेद, न कोई परदा न कोई चर्चा। न कुछ छिपाना न कुछ रुकाना। दंभ, छल, कपट आदि से अत्यंत रहित निर्मल अर्पण।
___नमो जिणाणं जिअभायाणं पद में दोनों साक्षात्कार समाए हुए हैं। इस साक्षात्कार में आकर हम इस स्वाध्याय का सफल परिणाम प्राप्त करे यही शुभकामना है । यह अंतिम पद हैं। अंत को आप लोग ऐंड कहते हैं। ऐंड के दो प्रकार हैं। And और END I And अर्थात् थोडा हैं, थोडा ओर चाहिए। END अर्थात् बस अब
और नहीं। आज हम इस पद की अंतिम उपासना And के साथ END करते हैं। आँखे बंदकर गहरी लंबी साँस के साथ महाविदेह क्षेत्र में छलांग लगादे। सिमंधर स्वामी का प्रत्यक्ष और समक्ष साक्षात्कार करते हुए चरणों में नमस्कार करते हुए भाव मुद्रा में, मालकोश राग में बिना किसी चमत्कार के नमस्कार करते हुए अपनी अंजलि का अभिषेक करते हैं।
नमोत्थुणं नमोजिणाणं जिअव्ययाणं नमोत्थुणं नमोजिणाणं जिअव्ययाणं नन्मोत्युणं नमोजिणाणं जिअभयाणं
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