Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 251
________________ अरिहंताणं पद से शुरू होता हुआ सूत्र अपने अंतिम पडावपर जिनेश्वर शब्द का प्रयोग करता हैं। साधकों में प्रश्न होता हैं प्रारंभ अरिहंताणं पद से सिद्धिगति पद के बाद जिनेश्वर पद की प्रक्रिया का क्या विधान हैं? परमात्मा की तीन विशेष मंत्रों के द्वारा उपासना की जाती है। उपास्य एक ही हो फिर भी विविध शब्दों या मंत्रों से उपासना करने का तात्पर्य अत्यंत रहस्यमय हैं। तीर्थंकर शब्द तीर्थ करनेवाले उपास्य के लिए उपयुक्त होता है। जो तीर्थ करते है वे तीर्थंकर हैं। तीर्थ करना सर्जन हैं, निर्माण हैं। जीवन में ऐसे कई अवसर होते है जब हमें किसी नवीन कल्पना को साकार करना होता है या किसी विशेष साधना का आयोजन करना होता है, किसी अनुष्ठान का प्रारंभ करना हो तब तित्थयराणं शब्द हमारा उपास्य मंत्र सिद्ध होता है। जिस स्थिति का निर्माण हो गया उसे चलाना हैं, सक्रिय रखना है, विकसित करना है तब जिनेश्वर शब्द हमारा उपास्य मंत्र सिद्ध होता हैं। चलता हुआ आयोजन किसी कारण से अटक जावे, रुक जावे तब अरिहंताणं शब्द उपास्य मंत्र सिद्ध होता है। जैसे आपने कोई गाडी खरीदनी है किसी कंपनी में उसका निर्माण होता है उसे लेकर आप चलाते है। किसी कारण से वह रुक जानेपर आप इसे सर्व्हिस सेंटर में सर्व्हिसिंग कराते हैं। बस यहाँ भी इसीतरह समझ लो। अनुष्ठान का निर्माण नई कंपनी की गाडी जैसा है। नमस्कार का मोल चुकाकर आप इसे अपना बनाते हैं। लाकर इसे चलाते हैं। चलते चलते रुक जानेपर सर्व्हिसिंग कराते हैं। नई गाडी लेना तित्थयराणं पद हैं। इसे चलाना जिणाणं पद हैं । इसे चलते हुए अनुष्ठान में कर्मवष रुकावट आनेपर अरिहंताणं मंत्र से सहायता लेकर पुन: अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ना हैं। इसे ही समझने के लिए विविध शास्त्रों में इन रूपों कों ब्रह्मा, विष्णु, महेश माना गया हैं। __ यहाँ नमो में स्वयं को स्वयं की साक्षी बनना हैं। साक्षात भाव से जिनेश्वरों को नमस्कार करने हेतु गणधर भगवंतों ने हमे नमो जिणाणं मंत्र का दान दिया। सृष्टि को शाश्वत मंत्र का वरदान मिला। भक्ति का सन्मान मिला। नमो एक वचन शब्द हैं, जिणाणं बहुवचन शब्द हैं। आप सोचोगे यह एकवचन बहुवचन क्या हैं? नमो में मैं स्वयं हूँ। मैं सिर्फ मैं, केवल मैं। साथ जुड़े हुए सर्व अस्तित्त्वों का मैं स्वतंत्र हैं। जिणाणं अर्थात् सर्व जिनेश्वरों को नमस्कार करने से शुभासय की विपुलता प्रगट होती है। सर्व जिनेश्वरों का गुणधर्म समान हैं। एक को किया जानेवाला नमस्कार सर्व जिनेश्वरों का नमस्कार हो जाता है। नवदानों में नमस्कार भी एक प्रकार का दान है। स्वयं का स्वार्पण हैं। अन्य सर्व दानों से यह दान निराला हैं। क्योंकि अन्य दानों को करने के बाद वापस कुछ आता नहीं पर यहाँ तो दान बढकर वापस रिप्लेस होता है। जगत का नियम हैं कि किसी को कुछ देते हैं तो उन्हें कुछ देना पडता हैं। छोटे बच्चे तक रिर्टन गिफ्ट देते हैं। भेंट से अतिरिक्त देने के चार प्रकार हैं। दान, दक्षिणा, आदक्षिणा और प्रदक्षिणा। ___ दान दे सकते हैं परंतु वापस ले नहीं सकते। आप भिखारी को चार रूपया देने चाहते हैं तो पाँच रूपए देकर आप ऐसा नहीं कह सकते कि चार रूपए रख और एक रूपया वापस कर। खरिदी या सफर में ऐसा हो सकता है पर दान में ऐसा नहीं ले सकते। ब्राह्मण या पूजारी को कुछ देते हैं तो वह दान नहीं दक्षिणा हैं। कोई माँगता हैं और हम देते हैं उसे दान कहते हैं। हम अपनी इच्छा और खुशी से देते है तो उसे दक्षिणा कहते है। यद्यपि आजकल तो पंडित 249

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