________________
कथा या पूजा करने से पहले ही स्वयं की दक्षिणा स्वयं ही नक्की कर बाद मे पूजा या कथा करते हैं। दान देते हैं तो दुआ मिलती हैं। दुआ से दुख दूर होते हैं। सद्गुरु के आशीर्वाद से दुःखदायी पाप दूर होते है। आशीर्वाद की व्याख्या करते हुए महापुरुषों ने कहा - आ = आता है, शी = शीतलता भरा, र = रक्षा का, वाद = वचन। जो जीवन में सुख शांति और रक्षा के वचन द्वारा समाधि पहुंचाते हैं उसे आशीर्वाद कहते हैं। आशीर्वाद अर्थात् अंत:करण की भाषा।
नवदान में नमस्कार का एक प्रकार है। आज का विज्ञान नमो की ४४४८ फ्रिक्वेन्सी बताता है। नमो का वारंवार उच्चार करनेवाले हमें इसकी तरंगदैर्घ्य का पता नहीं होता है। बाकी हमारे प्रतिदिन की नित्यक्रम की प्रणाली तिक्ख्युतो की पाठी में ही आयाहिणं पयाहिणं के द्वारा यह विधि संपन्न होती हैं। प्रदक्षिणा चारों ओर से दी जाती है। चारों ओर से हमारी भावना, श्रद्धा और आस्था की अंजलि प्रभु चरणों में धर दी जाती हैं। प्रदक्षिणा से पूर्व आदिक्षणा शब्द आता है। अर्थात् आदक्षिणा पूर्वक प्रदक्षिणा। अर्थात् हे प्रभु ! आपको जो प्रदक्षिणा की जाती हैं, हम जानते हैं कि आप वह अपने पास नहीं रखते हुए प्रदक्षिणा आदक्षिणा बन जाएगी और वहीं दक्षिणा बनकर हमारे पास आएगी। आप वितरागी महापुरुष हो। हमारा दान और दक्षिणा आप अपने पास नहीं रखते हो परंतु हमारा ऐसा करने का प्रयास इसलिए हैं कि आप में से निकले वाले पुण्य परमाणु प्रदक्षिणा द्वारा आकर्षित होकर आयाहिणं द्वारा हमारी ओर वापस लौटते हैं।
हम नमो शब्द का उच्चार करते हैं, कौन सुनता हैं यह शब्द? भरत क्षेत्र में रहकर हम में से निकली हुई भावपूर्वक तरंगे महाविदेहक्षेत्र में वर्तमान में बिराजमान बीस विहरमान के पास पहुँचती हैं। हमारा नमो का शब्द भाव के साथ वहाँ पहुँचकर वृत्ताकार घूमकर भगवान की दाहिनी पाँव की अंगुठे में समा जाती हैं। ऐसा मत समझना कि भगवान का बँक बॅलन्स बहुत बडा हैं कि वे उसमें जमा कर लेते हैं। परंतु भगवान के चरण में से पवित्र होकर , रिफाईंड होकर, रिबाउंस होकर, रिवर्स होकर हमारे पास वापस लौटता हैं। सिद्ध अनंत हैं। एक बार कहा जानेवाला नमो सिद्धाणं मंत्र अनंत गुणा होकर हमारी ओर वापस लौटता है। कितना अद्भुत सिद्धांत हैं यह।
नमो अरिहंताणं मंत्र में- नमो सामर्थ्य योग हैं। नमोत्थुणं शब्द में - नमो इच्छायोग है। नमो जिणाणं पद में - नमो शास्त्रयोग है।
शब्द अनुप्रास की दृष्टि से योग आपको थोडे जटील महसूस होते होंगे परंतु इसे इसतरह सरल बनाया जाता हैं ये तीनों योग आचाराग में इसतरह हैं - सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिंवाअंतिएसोच्चा। यहाँ तीनो योग इन तीन साक्षी में समा जाते हैं, सद्गुरु की साक्षी, शास्त्रों की साक्षी और स्वआत्म स्वरूप की साक्षी। साक्षी का तात्पर्य हैं जिनेश्वर भगवान भय को जीतकर जीतभय होते हैं। स्वयं भय को जीतकर अन्य को भयमुक्त कराते हैं। फिर चाहे वह भय व्यक्तिजनक हो, परिस्थितिजनक हो या मनस्थितिजनक हो। परमात्मा इन तीनों कारणों से मुक्त होने के कारण जीव सातों भयों से मुक्त हो सकता हैं।
250