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आमंत्रण तो दो। तुम्हारे शाश्वत घर में एकबार आ गया तो देख लो। तुम्हारे शाश्वत घर का वास्तु बदल जाएगा। तुम तो इस घर की दासी हो।चंदन तक ये भाव पहुंचे। उसने कहा प्रभु ! मुझे दासीपने से मुक्त करो। राजकुमारी से दासी होने के दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल दो। भगवान ने कहा, जगत् के सर्व अपने अपने कर्मों के अनुसार फल भुगतते हैं। इस थियरी में कुछ भी नहीं बदला जा सकता है। आत्मा की प्रबलता प्रगट होनेपर साधना का संचार होता है। समर्पण के दावपर सिद्धि का शिखर साधना का सर्वोच्च ध्येय बन जाता है। भाग्य, सौभाग्य की भावना जानते हुए भगवान ने कहा, वत्सा ! जब तुम कुछ बनाने की ऑफर ही करती हो तो तुम्हें भाग्यवान क्यों भगवान ही बनाउ। भगवान बनाने के लिए सामर्थ्यवान हूँ।
' अभिग्रह विशेष के कारण भगवान जब वापस लौटने लगे तब चंदन भीतर की भाषा से भगवान को रोकते हुए कहती है, हे म्हारा आँगणिए आयोडा मति जाओ महावीर... भीतर की भाषा को भीतर से सुनते हुए भगवान कहते है मैं द्रव्य से तुम्हारे आँगन में हूँ पर वास्तव में मैं तुम्हारे अंत:करण में आया हूँ।
चंदना ने स्वयं को पहचान लिया। प्रभु ! मैं संसार से थक चुकी हूँ। हार चुकी हूँ, मुझे जितालो, तारलो, मुझे बोध दो, मुझे मोक्ष दो। चंदन मुस्कुराई उसके भीतर के एक एक तार झंकृत हो गए। चंदना की चेतना भगवंत्मय हो गयी। नाभि से नमो का नाद प्रगट हो गया। नमोत्थुणं से झंकृत स्वरों के साथ नमोत्थुणं मुत्ताणं मोयगाणं का मुक्तगान प्रगट हो गया। साधक की इस उच्चदशा को जानते और देखते हुए सर्वज्ञ सर्वदर्शी मुक्ति की मंत्रणा कैसे करते हैं यह हम कल देखेंगे।
।।। नमोत्थुणं मुत्ताणं मोयगाणं ।।। ।।। नमोत्थुणं मुत्ताणं मोयगाणं ।।। ।।। नमोत्युणं मुत्ताणं मोयगाणं ।।।