________________
गणधर भगवंत कहते हैं, मोक्ष असंभव नहीं है । अपने देह में से मिटकर अपनामय हो जाना सिद्धि है । इसीलिए कहा है, सिद्धिगइनामधेयं उस सिद्धि के लिए तुम्हें तुम्हारे स्वरूप को जानना होगा कि, तुम स्वयं शिव अर्थात् कल्याणमय हो। तुम्हे सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं संपूर्ण संसार के लिए कल्याणमय होना है। तुम स्वयं अचल हो। तुम तुम्हारे में आ जाओ तो किसी भी परिस्थिति में कोई भी व्यक्ति, वस्तु या वातावरण तुम्हें विचलीत नहीं कर सकता है। तुम स्वयं अरोगी हो । देह में होनेवाले रोगों को स्वयं में होने का मानना मिथ्याभास है। बाहर के कितने ही एम-आर-आइ करावो परंतु एक बार भीतर उतर कर एम आर आय करके तो देखो आपका भीतर कितना नीट और क्लिन है । दर्पण के शिशे की तरह स्वच्छ सुंदर तुम्हारे स्वरूप का दर्शन तो करो। अनंत सिद्ध आत्मा की तरह तुम सिद्ध स्वरुप हो । भले ही अनंत काल हो गया तुम स्वयं के स्वरूप को नहीं समझ पाए हो परंतु अब अवसर मत चुको। स्वयं में प्रगट हो जाओ । आज नहीं कल नहीं अनंतकाल तक कभी भी तुम दुखी नहीं होओगे। तुम्हारे भीतर ही अक्षय सुख का भंडार हैं। उस अक्षय सुख का किसी भी कारण से क्षय नहीं पाता है। जो क्षय हो जाते हैं उन पदार्थों के लिए तुम्हारे भीतर के अक्षय स्वरूप को क्षति क्यों पहुंचाते हो? अमूल्य ऐसा नमोत्थुणं तुम्हें बिना कुछ मोल चुकाए मिल गया है। फिर भी याद रखो इसको पाने के लिए तुम स्वयं दाव पर लग चुके हो। संसार का यह अंतिम दाव हैं। अनंतकाल से आप पराजित हो रहे थे। यह जन्म आपके जीत का जन्म हैं। ऐस जीत में कोई बाधा पीडा नहीं। कोई अवरोध नहीं कोई ग्रह क्लेश नहीं। तुम मजबूत हो, अचल हो, अव्याबाध हो तो तुम्हारा मार्ग अवरोधों से रहित हैं। बस चले जाओ वहाँ तक जहाँ का नाम सिद्धि गति हैं ।
मुड़कर वापस मत देखना । यहाँ केवल अकेले ही चलना हैं। यह पथ अपुनरावृत्ति हैं । यहाँ से वापस लौटना नहीं होता हैं । जिस प्रकार ससुराल जाती हुई बेटी वापस लौटकर नहीं देखती हैं उसीतरह किसी भी विषय कषाय की वृत्ति या प्रवृत्ति की आवृत्ति या पुनरावृत्ति नहीं करनी हैं । नमोत्थुणं सुपर कॉम्पुटर हैं। गणधर भगवन प्रोगाम हैं। ऐसा प्रोग्राम उनके सिवा कौन बना सकता है। इस प्रोग्राम के कम्पल्टिली सॉफ्टवेयर इंजीनीयर शक्रेंद्र भगवन हैं। आओ अनंत ज्ञानी गणधरों के अनंत स्रोत में स्वयं के अनंत को समा दो। अनंत काल से अनंत शास्त्र इसमें समा गए हैं। अनंत साधकों द्वारा अनंत बार इसका पारायण होता गया। अनट गणधरों के अंतःकरण में प्रगट दिये के साथ हमारे आत्म दिपक का नमोत्थुणं स्पर्श होते ही प्रगट जाता हैं अनंत ज्योत समा जाती है। ऐसी सिद्धि गति नाम के स्थान को प्राप्त करने के लिए ठाणं संपत्ताणं मंत्र को जान लो । जप लो। नमो जिणाणं जिअभयाणं मंत्र आपके साथ निरंतर सहाय करता है। निर्भीक होकर आगे बढो । जिअभयाणं स्वयं आपको अभय दे रहे हैं । भयमुक्त कर रहे हैं।
// सिव-मयल-मरुयमणंत मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति - सिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्ताणं ॥
245