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चाहिए। भीतर का चिराग आप जलाए बाहर का मुझे दीजिए। संत ने कहा, यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। कुम्हार ने सोचा जंगल में इस कुटिया और इस संत के सिवा कुछ नहीं हैं। जो भी पाना हैं इन्हीं से पाना हैं। उसने संत के पाँव पकडे और बिनती करने लगा। मंत्र दो, जंत्र दो, तंत्र दो पर मेरे गधों की रक्षा करो। गधे सहित रातभर के लिए मैं तुम्हें समर्पित हूँ। संत कुम्हार की भाषा समझ चुके। कुछ भी करके इसे समझाना होगा। उन्होंने आँख बंद की, हाथ फैलाया और कुम्हार से कहा जा तेरे गधों के पास। एक एक को पकडकर पेड के साथ बाँध दे। रस्सी तुझे दिखाई नहीं देती हैं तुझे प्रयास पुरा करना हैं। गधे बंध जाएंगे।
कुम्हार गया वैसा ही किया रात गई प्रात: आयी। कुम्हार उठा गधों को थपथपाया चलने का आदेश दिया पर सारे प्रयास व्यर्थ हो गए। गधे आगे बढने को तैयार ही नहीं थे। पुनः गया संत के पास अपना गीत गाया, दुःख रोया, उपाय मांगा। संत ने कहा, मंत्र से बंधी वह रस्सी खोली या नहीं? कुम्हार झेंप गया। रस्सी थी नहीं बाँधा क्या था? उसने संत से कहा, नहीं खोला। संत ने कहा जा पहले गधों को खोल और चलने का बोल। जिस क्रिया से तुने गधों को बाँधा हैं उसी की प्रतिक्रिया से उन्हें खोल दे। क्रिया और प्रतिक्रिया यहीं संसार हैं। यहीं बंधन हैं इन बंधनों का खोलना मुक्ति है। साक्षीभाव में रहकर बंधनों को देखना है, खोलना हैं और बंधनों से मुक्त होना है। आश्रव को रोकना हैं, संवर को सवारना है और निर्जरा से कर्मों को झाडना है, आत्मा से अलग करना है इसी का नाम मुक्ति
कल दोपहर को कुछ ऐसे बच्चे आए जिनको नमोत्थुणं तो आता था पर उसका अर्थ नहीं समझता था। कहते थे हमें ये सूत्र अच्छा लगता है परंतु इसका अर्थ नहीं समझता है। दादी कहती हैं यह सब परमात्मा के विशेषण हैं। हमें भी परमात्मा स्वरुप जानने की इच्छा होती है। हमारे जैसी भाषा में हमें नमोत्थुणं का सार समझाए। हम यह जानते हैं और इतना मानते हैं कि परमात्मा हमें जानते हैं और पहचानते भी है परंतु हम परमात्मा को नहीं पहचान पाते। परमात्मा का परिचय और पहचान कराते हुए उनसे कहा, पाँच ऐसे प्रमाण हैं जो सिर्फ परमात्मा के ही होते हैं। एक युनिवर्सल ट्रथ और युनिवर्सल एक्सेप्टेड। सभी धर्मवाले परमात्मा का स्वीकार करते है। दूसरा सुप्रिम अथोरिटी अर्थात् जो सर्वोच्च हो। जिसके उपर कोई नहीं हैं। गुरु, शिक्षक, रक्षक। किसी की उन्हें आवश्यकता नहीं है। तीसरा युनिक प्रसनॅलिटी। परमात्मा सर्वोपरी हैं। जन्म और मृत्यु का चक्र संसारचक्र, कालचक्र, कर्मचक्र परमात्मा इन सभी चक्रों से पर है। चौथा ऑल नॉलेज फुल। परमात्मा सर्वज्ञ हैं। सब कुछ जानते देखते है। सृष्टि के आदि, मध्य और अंत के ज्ञाता है अर्थात् परमात्मा त्रिकालदर्शी हैं। पाँचवा इनफिनिट अर्थात् परमात्मा सर्वगुण संपन्न हैं। परमात्मा ऐसी कोई डिग्री नहीं है जिसे कोई स्कुल, कॉलेज या युनिर्वसिटी से प्राप्त कर सके।
परमात्मा का सामर्थ्य अचिंत्य होता है। इसकी महिमा के लिए कहा है, अचिंतसत्तिजुत्ताई। साधक की निर्मलता प्रगट होते ही परमात्मा उनके कल्याण के प्रोग्राम बना लेते हैं। दुःखी और भूखी चंदनबाला परमात्मा को सहसा आँगन में देखकर एकदम हर्षायी और मन ही मन बोली, मैं कितनी पुण्यवान हूँ कि प्रभु मेरे घर पधारे। परमात्मा अपनी परावाणी में कहते हैं, किसने कहा मैं तुम्हारे घर आया हूँ, थोडा सा सोचो चंदन। क्या यह तुम्हारा घर हैं? जिसे तुम घर कहते हो वह घर तो मूला सेठानी का है। तुम्हारे शाश्वत घर में एकबार मुझे बुलाकर तो देखो।
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