Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 226
________________ बोध में तत्त्व है। बोधि में सत्त्व है और संबोधि में सर्वस्व हैं जो सिद्धि के लिए आवश्यक है। भगवान ऋषभदेव ने ९८ पुत्रों को बोध द्वारा उपदेश देकर तत्त्व प्रदान किया था। ब्राह्मी और सुंदरी को बोधि द्वारा संदेश पहुंचाने का आदेश देकर उनमें सत्त्व प्रगट किया था। बाहुबली को ऐसी संबोधि थी जिसमें संदेश आदेश बन गया और बाहुबली का सर्वस्व प्रगट हो गया। इसमें करना था भगवान ऋषभदेव ने और वह भी बाहुबली के प्रति। ब्राह्मी सुंदरी सिर्फ माध्यम मात्र थी। संदेश वाहक के रुप में अनायास पहुंच गयी थी। भगवान ने संदेश वाहक का सत्त्व प्रगट कर दिया। दोनों बहनें स्वयं के प्रति कुछ पाने के लिए नहीं आयी थी। वे तो आयी थी भाई को मिलने के लिए। बाहुबली जी के दीक्षा की प्रथम एनिवर्सरी मनाने। क्या कुछ पा लिया होगा वर्षभर में उस साधना को प्रणाम करने आयी थी। एनिवर्सरी शब्द सुनकर आपको विचित्र लगा होगा। यह आज का शब्द है। आज साधु साध्वी एनिवर्सरी मनाते हैं। संसारियों को देखकर संयम की २५ वर्ष की सिलवर ज्युबिली मानाइ जाती है। जिस संयम की प्राप्ति सुवर्ण सिद्धि की अमूल्य तक माना जाता है। आचारांग में इसके बारे में बहुत अच्छा कहा है, जहेत्थ मए संधि जोसिए भवति, एवं अनत्थ संधि दुज्झोसिए भवति । जैसा सुवर्ण अवसर मुझे प्राप्त हुआ है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। कइ भवों के संचित पुण्य हो तब ऐसा सुवर्ण अवसर प्राप्त होता है। जिस पथ की प्रतिक्षणें स्वर्णमय हो उस के २५ वर्ष को रजतमय मानकर महोत्सव करना कैसे उचित है? बिचारे संसारी जिनके जीवन के २५ वर्ष अनेक संघर्षों में बीते हो वे २५ वर्ष तक या ५० वर्ष तक संबंधों के टीके रहने के अवसर को महोत्सव के रुप में मनाए उचित भी है। चलो जो भी हो हम तो चले उन बहनों के साथ जो अपने भगवंत बनने वाले संत मुनि के पास प्रभु का संदेश पहुंचाने गइ थी। परमात्मा की कोई भी सेवा निरर्थक नहीं होती। परमात्मा का कोई भी आदेश व्यर्थ नहीं होता। वही सार्थकता सत्त्व बनकर सार्थक हो गई। परमात्मा ने कहा तुम्हारा भाई हाथी की अंबाडी पर चढ कर बैठा हुआ है उसे उतारो पहले नीचे। बस मेरा यह संदेश उन्हें पहुंचा दो। अचरज से देख रही है दोनों बहनें। दीक्षितभाई कैसे हाथी की अंबाडी पर बैठा होगा। प्रभु से कहा हम आपकी बात समझे नहीं। भगवान ने कहा आपसे बात नहीं कही संदेश दिया है। संदेश समझने के लिए नहीं सुनाने के लिए होता है। जिनको संदेश दिया जाता है उन्होंने इसे समझना है। संदेश उनको दिया जाता है जिन्होंने उपदेश सुना हो और आदेश धारण किया हो। आप तो पर्वत की टोच पर हाथी के उपर अवरुढ आपके भाई को संदेश दो कि वह गज से नीचे उतर जाए। परमात्मा का संदेश लेकर दोनों बहनें पर्वत की तलहटी पहुंची पर्वत के उपर चढने का मार्ग देखती हुइ प्रदक्षिणा देने लगी। कोई रास्ता न मिलतेपर वे सोचने लगी क्या किया जाय? जहाँ हम नहीं पहुच सकते वहाँ मन जा सकता है। मन को पवन ले जाता है, पवन को वचन ले जाता है। ऐसा सोचकर उन्होंने दीर्घ श्वास के साथ बाहुबलि जी को संदेश सुनाया और वापस लौट गई। ___ थोडीसी गहराई में जाइए। मुनिश्री जहाँ ध्यान में खडे थे। पर्वत की टोक, बेल बल्लरी से लिपटी हुई काया, पक्षियों ने जिसपर घोसलें बनाए हो ऐसे अंग उपांग, सिंह की गर्जना और हाथी के चिंघाडों को काटती हुई 224

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