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नमोत्थुणं बुद्धाणं बोहयाणं
स्वयं में संबुद्ध हैं अतः परमात्मा सयंसंबुद्धाणं हैं।
अन्य में बोधि प्रगट करते हैं इसलिए बोहिदयाणं हैं। स्वयं बुद्ध हैं और अन्य में बोध प्रगट करते हैं अतः बुद्धाणं बोहयाणं है।
परमात्मा देते हैं उसे बोध कहते हैं।
हम लेते हैं उसे बोधि कहते हैं। जो हममें परिणमता है उसे संबोधि कहते हैं।
जीवदयाणं अर्थात अस्तित्त्व में आना। बोहिदयाणं अर्थात् अस्तित्त्व की अनुभूति में आना। बुद्धाणं बोहयाणं अर्थात् अस्तित्त्वमय हो जाना।
बुद्धत्त्व का बोध तीन तरह से प्रगट होता है।
आदेश, उपदेश और संदेश।
इन सबका अनुप्रास क्रमबद्ध देखकर हम इसकी गहराई को छूकर अनुभव पाएंगे।
सयंसंबुद्धाणं उपदेश (बोध)देते हैं। बोहिदयाणं आदेश (बोधि) देते हैं।
बुद्धाणं बोहयाणं संदेश (संबोधि) देते हैं।
समस्त नमोत्थुणं सूत्र में बोध के ये तीन सूत्र प्रस्तुत हैं। तीनों का आपस में संबंध होते हुए भी तीन मंगल के रुप में सूत्र में प्रस्तुत हैं। सयंसंबुद्धाणं आद्य मंगल है। बोहिदयाणं मध्यमंगल है और बुद्धाणं बोहयाणं अंतिम मंगल है। हमारी चेतना मुख्य दो अवस्थाओं में परिणमित होती है - प्रसुप्त और प्रबुद्ध। ज्ञानी पुरुषों की चेतना के परिणाम के अनुसार बुद्ध पुरुषों के तीन प्रकार के होते है। प्रत्येक बुद्ध, बुद्धबोधित और स्वयंसंबुद्ध। प्रत्येक बुद्ध अर्थात् किसी निमित्त अर्थात् संसार के पदार्थ प्रसंगपर से बैराग्य प्राप्त कर बुद्धत्त्व प्राप्त कर लेना। जैसे स्त्रियों के हाथों के कंकण उतार लेनेपर एक एक चुडी रखने से होनेवाली शांति से बुद्धत्त्व पाया। बुद्ध बोधित अर्थात् गुरु से प्रतिबोधित होकर बुद्धत्त्व प्राप्त करना। स्वयंसंबुद्ध अर्थात् किसी भी निमित्त अथवा गुरु उपदेश के बिना स्वयं प्रतिबुद्ध होना जैसे तीर्थंकर। सिद्ध के पंदरह प्रकारों में स्वयंबुद्ध सिद्ध, प्रत्येक बुद्धसिद्ध और बुद्ध बोधित सिद्ध के प्रकार मिलते है।
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