Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 223
________________ यह भी एक संसार का आश्चर्य है कि किसीकी जिंदगी का हिसाब किताब कोई कैसे कर सकता है ? जो न तो गुरु है न ज्योतिषी और न तो नाविक ने अपने जीवन के हिसाब की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा व्यक्त की है । यात्री ने तीसरा प्रश्न पूछा कि, तुम बार-बार ऊपर आकाश की ओर क्यों देख रहे हो ? नाविक ने कहा हवा कि.. लहरों में तूफान नजर आता है, इसलिए मै आकाश की स्थिति को देखता हूं । विद्वान ने कहा इसका मतलब तुम्हें भूगोलशास्त्र और खगोलशास्त्र का ज्ञान है? बाबूजी ! आपको मैंने कहा न कि मै पढा लिखा नहीं हूं । नाविक का यह वाक्य सुनकर यात्रि जोर से हँस पडा और कहने लगा फिर तो तुम्हारी ७५ % जिंदगी पानी में गयी । नाविक ने कहा सही है बाबूजी ! यू तो बचपन से अभीतक सारी जिंदगी पानी में ही बितायी है । सुबह से उठकर शाम तक नौका में ही समय बीताता हू । कभी रात भी हो जाती है । इन्हीं समुंदर की लहरों से प्यार करता हूं। कभी तूफान आने पर इन्ही लहरों को सहलाता हूं , स्वयं को संभालता हूं और घर लौटने पर भगवान का आभार मानता हूं । नाविक का उत्तर सुनकर विद्वान कुछ प्रश्न करे उससे पहले ही समुंदर में भयंकर तूफान की शुरुआत हो गयी । समुंदर का मायावी रुप देखकर विद्वान का हौसला टूटने लगा । नाविक ने कहा बाबूजी ! संभाल लीजिए स्वयं को । तूफान का कोई भरोसा नहीं है । मै आपको सुरक्षित रखने का पूर्ण प्रयत्न करता हूं परंतु तूफान बेकाबू हो जाए तो नौका नियंत्रण से रहित हो सकती है । अच्छा, तो आप यह बताइए कि आपको तैरना तो आता है न ? गुस्से में आकर घबराते हुए विद्वान ने कहा, बेवकूफ ! यदि मुझे तैरना आता तो तेरी नौका में क्यों बैठता ? नाविक ने कहा, माफ करना बाबूजी ! मेरी तो पौनी जिंदगी पानी में गयी आपको तो घडी देखना आता है । आप पढे लिखे हो । भूगोलखगोल जानते हो परंतु सिर्फ तैरना नहीं आता तो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी कहकर ठहाका मारकर हंसने लगा। गुस्से में आकर विद्वान ने कहा, तुम्हें मजाक सुझती है, यहाँ मेरी जिंदगी के साथ खिलवाड हो रहा है । इतने में नाविक ने लहर के उपर जोर से थपाटा मारके नौका को इस तरह से घुमाया कि नौका यात्री समेत उछलकर तूफान से बाहर होकर सीधी तट तक पहुंच गयी। घबराए हुये विद्वान को हाथ पकडकर प्रेम से नौका से बाहर उतारा। क्या मात्र पानी में तैरना या तैरना आ जाने को ही कला कहते है ? तैरना तो मछली को भी आता है। पूरी जिंदगी तैरती ही रहती है पर बिचारी तट से ही डरती है। ज्ञानी पुरुष हमें अवश्य तारते हैं पर हम तट से ही डरते हैं। तिण्णाणं तारयाणं के हाथों से खिसक कर पुनः पुन: पानी में चले जाते हैं। बस हमें तो तैरते ही रहना है। बाहर निकलना ही नहीं है। पानी की विशालता और समुद्र की गहराई हमें रास आ गई है । आज से ही नहीं भंवातरों से हम ऐसा ही करते रहे हैं। परमात्मा ने हमें एक नहीं दो नहीं चार-चार नावे दी हैं। जिनको तीरना है उन्हें कहीं उलझने के आवश्यकता नहीं। कूद पडो किसी भी एक नाव में। दो नाव के यात्री कभी मत बनना। दो नाव में पांवरखोगे तो पार नहीं उतर पाओगे। फिर कही डूबने की आशंका रहेगी। पथ विशाल है। साधन अनेक है। स्वयं को सामर्थ्य विहीन न समझो। भूजा से नहीं तैर सकते हो तो यहाँ 221

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