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रहे हैं। प्रात:काल उठते ही पूर्ण तरोताजा होकर स्वस्थ हो जाओ। गहरे गहरे सांस लेकर स्वयं को हलका महसूस करो । रातभर के विश्राम के बाद यह आपकी अपनी प्रभात है। आप का चित्त निर्मल और निर्विकार है। आपके चिदाकास में अब कोई बादल नहीं है। निद्रा खुलने के तुरंत बाद आँखे खोलने से पहले ही कुछ समय ऐसे ही पडे रहो। स्वयं के अगुरुलघु स्वभाव का अनुभव करो। हमारा चित्त अत्यंत संवदेनशील है। आँख खोलते ही हमे संसार को देखकर संसारी हो जाते है। इसी लिए चेतना को परम चेतना में संलग्न होने दो। ज्ञातादृष्टा बनकर स्वयं को जान और परम को देख । कही ऐसा न हो कि हम किसी तट पर पहुंच कर भी समुद्र न छोड रहे हो। परमात्मा उनको संबोधन कर कहते है, वत्स! बस हो गया। कितनी बार समुद्र में गिरा कितनी बार बाहर आया। अब छोड ये गेलगम्मत। इसके लिये शास्त्र में बहुत सूंदर गाथा है
तोहुसि अण्णवं महं, किं पुणचिट्ठसि तीरमागओ । अभितुरपारं गमित्तए, समयं गोयम मा पमायए ।।
वत्स ! अब छोड दे तट पर नाचना । अब समुद्र पार करके बाहर आजा । बहोत शीघ्रता से आजा । क्षणिक मात्र का प्रमाद किये बिना बाहर आजा । मरजीवा की तरह कितनी बार गहरे समुद्र में जाकर रत्न लाकर भक्तों को खुश करता रहेगा? तट पर रहना खतरा है। तू खतरे से बाहर हो जा। समुद्र की एकाद लहर भी तूफान भरी होगी तो पुनः तुझे गहरे समुद्र तक ले जा सकता है। संसार समुद्र है। संयम तट है। तट को ही सबकुछ न मानलो । तट से भी आगे एक मार्ग है। जिसपर तुम्हारी मंजील है। वत्स! अभितुर अर्थात् शिघ्र ही बिना प्रमाद किये तू पार कर ले। संसार की गहराई अतल है अमाप है। वत्स! जो भारी हैं वह डूबता है। जो हलका है वह तिरता है ।
तू कितना भी ज्ञान प्राप्त किया हो परंतु तैरकर पार हो जाने का ज्ञान, विद्या, कला नहीं जानता है तो सब व्यर्थ होता है । जैसे एक बार एक विद्वान नौका में बैठा था। सामने तट पर आयोजित एक विद्वत्सभा में उसे जाना था। नाविक अपनी स्वाभाविक गति से नौका चला रहा था। यात्रिक गति में शिघ्रता और त्वरितता चाहता था । बारबार कलाई पर लगी घडी और सामने तट से नौका तक का फासला देखता रहता था। साथ ही नाविक को शिघ्रता से नौका चलाने का आग्रह भी करता था। एक बार उसने अपनी कलाई की घडी को दिखाते हुए कहाँ, देखो घडी में कितने बजे है, मुझे छह बजे आयोजन में पहुंचना है। नाविक ने कहा बाबूजी ! हमें घडी देखना कहाँ आवे ? हम तो बस आप जैसे यात्रियों को इस तट से उस तट तक सुरक्षित कैसे पहुचाना यही जानते हैं। यात्री ने कहाँ, यदि घडी देखना न आवे तो तुम्हारी जिंदगी का पांव (१/४) हिस्सा पानी में गया। अच्छा घडी देखना नहीं आता है। पर तुम कितना पढे हो ये तो बताओ ? उसने कहा, बाबूजी ! पढना लिखना कहा जाने ? हम तो सिर्फ नौका की गति, प्रकृति का हवामान और समुंदर और किश्ती का संबंध जानता हूँ । विद्वान ने कहा फिर तो तेरी आधी जिंदगी पानी में गयी ।
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