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नमोत्थुणं - धम्मसारहीणं
जो साथ रहकर स्थिरता तक साथ निभाते हैं उन्हें सारथि कहते हैं। जो धर्म के सार को हित के साथ प्रदान करते हैं उन्हें धर्म सारथि कहते हैं। तीर्थ की स्थापना कर परमात्मा नायकत्त्व निभाते हैं। तीर्थ देकर नायक बनते हैं । तीर्थ में तत्त्व देकर प्रभु सारथि बनते हैं। तत्त्व रथ हैं उसे धर्म सारथि चला सकते हैं। सारथि पाच प्रकार से काम करते हैं। चालन, पालन, पोषण, रक्षण और नियंत्रण । गाडी चलाते समय ड्रायव्हर जैसे गाडी को चलाता है। चालन की इस प्रक्रिया में वह उसका पालन करता है। पोषण करता है । रक्षण करता है और जब आवश्यकता रहती हैं तब ब्रेक लगाता हैं अर्थात् नियंत्रण करता हैं रोकता है।
आपको पता हैं माहाराजा श्रीपाल जन्म से और कर्म से राजकुमार थे। कुछ ऐसा चालन हुआ अचानक सबकुछ बदल गया। जमीन, जायदाद, राज्य, परिवार सबकुछ छूट गया। केवल मात्र माँ के साथ जंगल में भटकना पड़ा। पर उन्हें वहाँ मिले परमात्मा । कर्म का चालन और परमात्मा का चालन और पालन साथ साथ चलने लगे। जंगल में भी वे मंगल का अनुभव पा रहे थे। कुष्ठ रोग में भी समाधि भोग रहे थे। बिना राज्य - घर-परिवार के भी राजकुमारी से शादी हो रही थी। धवल शेठ के द्वारा बार बार मारने के प्रयोग में भी रक्षण हो रहा था । इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस बात का दावा करते हैं कि जिनकी गाडी के सारथी परमात्मा होते हैं उनका जीवनरथ निरंतर प्रशस्त रहता हैं ।
इसके लिए सर्वथा समर्पण जरुरी हैं। केवल मात्र कुछ पैसे खर्च कर आप रेल, प्लेन या टेक्सी की टिकट ते हैं तो भी अपने अमूल्य जिंदगी को ड्राईव्हर के भरोसे कर देते हैं । सारी जिम्मेवारी ड्राईव्हर के उपर होती हैं। इसीलिए गुरुदेव दीक्षा के समय दीक्षार्थी को कहते हैं कि शासन में तुम्हें ड्राइव्हर बनकर जिना हैं। बस में पच्चास प्रवासी हो और वे सो रहे हो तो चलता हैं पर एक ड्राइव्हर को जगना जरुरी होता हैं। ड्राइव्हर जाग्रत हैं तो प्रवासी सुरक्षित हैं । इसीतरह शासन को जाग्रत रखने के लिए तुम्हें हंमेशा जागते रहना होगा ।
संयम जीवन की प्रथम रात में विचलीत हुए मेघमुनि ने जब संसार में वापस लौटना सोचा तब समस्त साधना मंडप में उन्होंने देखा तो करीब करीब संतमुनि जग रहे थे। कोई स्वाध्याय करता था तो कई ध्यान और चिंतन में लीन थे। उन्हें तुरंत याद आया दीक्षा के समय गुरु गौतम ने उन्हें कहा था वत्स! जितना अधिक जग सको आपको जगना हैं । जगत् को जगाना हैं। आप आज नूतन दीक्षित हैं इसलिए आपको विश्राम करने की इजाजत हैं । पर मुझे कहाँ निंद आती हैं। आएगी भी कहाँ से? संथारा पतला और परिभ्रमण करते हुए मुनिराजों की चरणरज से लिष्ट हैं। मुझे आदत भी तो नहीं हैं जीवनभर यह सब सहना बहुत मुश्किल हैं। कहाँ जानते थे मेघमुनि क जीवन की जिस नई गाडी में आज वे बैठे हैं उस गाडी के सारथि स्वयं भगवान महावीर हैं। गाडी में बैठने के बाद गाडी कैसी चलानी, कितनी तेज चलानी आदि सब ड्राइव्हर के हाथ में होता हैं ।
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