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को यदि बोयी नहीं और सेकली तो उसकी कटुता टलती हैं और अपना भिन्न स्वाद प्रस्तूत करती है। अत्थि ते अत्थितं परिणति, नत्थि ते नत्थितं परिणमति। जो जिसमें होता हैं वहीं उसमें से प्रगट होता है। जो जिसमें नहीं हैं वह उसमें नहीं परिणमता है। जिण्णाणं जावयाणं पद स्वयं को जितकर अन्य को जिताने का सामर्थ्य रखता है । इसे चतुष्पदी पद हैं। इसका अन्य तीन पद से संबंध हैं -
प्रेम की अभिव्यक्ति जीत है.
थांति की अभिव्यक्ति तीर्ण हैं। .. आनंद की अभिव्यक्ति बोध की प्राप्ति हैं,
आत्मा की अभिव्यक्ति मुक्ति हैं।
जितने के लिए युक्ति चाहिए, तिरने के लिए शक्ति चाहिए।
बोध पाने के लिए पूर्ति चाहिए, सिद्ध होने के लिए मुक्ति चाहिए। व्यवहार में कहा जाता है
जवानी में जीत लो, व्यवहार और व्यापार में तीर जाओ। प्रौढावस्था में बोधपामो और मृत्यु के पहले मोक्षपाओ। अंत में एक सिख साथ में रखो सदा- हारेतेहरिनहीं, हरितेहारे नहीं। यदिहरिहमारे साथ हैं तोजीवन में हमारी कभी हार नहीं और जीवन कोई भार नहीं।
ऐसे जिणाणं जावयाणं से विजयपद लेते हुए तिरने के लिए स्वयं को भव समुद्र में समर्पित कर समंदर तिर्ण करने के लिए तैयार हो जाओ।
।।। जिण्णाणं जावयाणं ।।। ।।। जिण्णाणं जावयाणं ।।। ।।। जिण्णाणं जावयाणं ।।।
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