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१.
• जंतुओं का उपद्रव :- जो दिन की अपेक्षा रात में अधिक होते हैं।
२. चोरों का उपद्रव :- यह भी रात को अधिक होते हैं।
३. अनाचारी तत्त्वों का अनाचरण :- दिन की अपेक्षा रात में अधिक होता हैं।
४. पतन का भय :- रात को अधिक होता हैं।
परमात्मा को पाने के लिए सर्व प्रथम भयमुक्त होना जरुरी हैं। भयमुक्त होनेपर ही हम प्रभु को पा सकते हैं। परमात्मा पाने की बात करते हुए आनंदघन जी कहते हैं - सेवनकारण पहली भूमिका रे अभय अद्वेष अखेद...... परमात्मा के प्रति की जानेवाली श्रद्धा, भक्ति, सेवा, पूजा की प्रथम भूमिका में ही भय, द्वेष और खेद का परिरहार किया हैं । भय अर्थात् परिणाम की चंचलता कहकर - भयचंचलता हो जे परिणामनी रे.. भय अर्थात् मन के प्रकंपनों को छोडते रहना। अभय अर्थात् मनस्थेर्य । भय के चार प्रकार हैं
१. कल्पना से डरना,
२. आशंका से डरना,
३. वास्तविकता से डरना,
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४. अवास्तविक को वास्तविक मानकर डरना । जैसे रात के समय में डोरबेल बजनेपर अचानक दरवाजा खोलना पडता हैं या किसी कारण से रात को बाहर जाते हुए चोर, डाकू लूटेरों की कल्पना से भयभीत होना। किसी सूने बंगले में गेट खोलकर अंदर प्रवेश करने से पूर्व कुत्ते की आशंका से डरना । जैसे आंगन में बच्चा खेल रहा हो तब अचानक कोई अनजान आदमी आकर बच्चे को उठाता हैं तो वह जोर जोर से रोता है उसकी रोने की आवाज सुनकर माता भगकर बाहर आती है और बच्चे को हसती हुई कहती है, ये तो मामा हैं, मामा से नहीं डरना चाहिए। बच्चा आनेवाले को मामा के रुप में नहीं पहचानने से उसे अवास्तविक मानकर भयभीत होता है रोता हैं । कईबार तो हम अवास्तविक को वास्तविक बनाने की चेष्टा करते हैं। जैसे बच्चे को सुलाती हुई माता उसके नहीं सोनेपर उसे धमकी देती है, तू नहीं सोएगा तो भूत आएगा और तुझे पकडकर ले जाएगा। इसतरह कितनी ही बार अवास्तविक को वास्तविक बनाने का प्रयास कर निरर्थक कल्पना का निर्माण करते हैं। बच्चों को निर्भिक भी हम करते हैं तो भयभीत भी हम करते हैं। खैर जो भी हो परंतु एक बात निश्चिंत हैं कि बालक जब डर जाता है तब यदि वहाँ माँ उपस्थित हो तो बच्चा उसे लिपट जाता हैं। यदि माँ कही ओर बैठी हो तो भगकर गोद में बैठ जाता है। हम सब अनादिकाल से चारों प्रकार के भय से सातों भयों द्वारा भयभीत होते रहे हैं । परमउपकारी गणधर भगवंत हमें अभयदयाणं का मंत्र दान कर अनंत जिनेश्वर माता की गोदी में अर्पित कर हमें भय से मुक्त कर रहे हैं। केवल मात्र ४८ मिनिट की सामायिक में संपूर्ण संसारे के समस्त जीवों को हमारे द्वारा अभयदान कराते हैं और नमोत्थुणं द्वारा अभयदयाणं का मंत्र देकर संपूर्ण जगत् के • समस्त जीवों को हमसे भयमुक्त करते हैं।
लोक के अंदर उजाला तो प्रभात होते ही होता है परंतु जीवन में उजाला किसतरह हो इस बारे में सोचा हैं कभी? हमारे अंत:करण में प्रभु पधारते हैं तो जीवन की प्रभात होती हैं। जीवन में उजाला होता हैं। उजाला होते ही अंधाकर टूटता है भय भगता हैं। लोकपज्जोयगराणं पद द्वारा गणधर भगवंत् हमें विश्वास देते हैं के उजाले उजाले में कदम बढाओ तुम्हारी मोक्ष यात्रा का प्रारंभ हो गया है मार्ग में डर लगता हैं तो अभयदयाणं को याद करो आपको
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